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मूलाराधना
आश्वासः
ण डहदि अग्गी सच्चेण परं जलं च तं ण बुडइ ॥ सच्चबलियं खु पुरिस ण वदि तिक्खा गिरिणदी बि ।। ८५८॥ दयते न हुताशेन न निमज्जति वारिणि ॥
धन्यः सत्ययलोपेतो नरो नद्यापि नोयते ।। ८४७ ॥ विजयोग्या-ण उहदि अभी गरं न दहत्यग्निः सत्येन नरं । जलंचता युधि जलं च तन निमज्जयति।। सवलियं सत्यमेव बलं तद्यस्यास्ति तं न यहति नाकर्षयति । तिक्सा गिरिनदीयि तीमधेगा गिरिनपि ॥
अर्थ-सत्यवादी को अग्नि जलाती नहीं. पानी उसको बोने में असमर्थ होता है. सत्यभाषण ही जि. सका सामर्थ्य है ऐसे मनुष्य को बडे वेगसे पर्वतपरसे कूदनेवाली नदी भी नहीं यहा सकती है.
सच्चेण देवदावो णवति पुरिसरस ठंति य वसम्मि ।। सच्चेण य गहगहिदं मोएड करेंति रक्खं च ॥ ८३९ ॥ वझ्या भवंति सत्येन देवताः प्रणमन्ति च ।।
विमोचयन्ति सत्येन ग्रहतः पांति च स्फुटम् ॥ ८५८ ॥ विजयोदया-सयेगा देवदाओणमति सत्येन देवता नमभ्यंनि । पुरिसस्स टसि य वसम्मि पुरपम्य च वशे तिति । गह गहिद मण मोएर पिशाच ग्रहणं मोचयनि सत्येग । कति सशंण रक्यं च कुर्वन्ति सत्येन ग्रहादिरक्षा।
अर्थ सत्यके प्रभावसे देवतायें सत्यवादी को बंदन करती हैं. और उसके वश होती होती है. सत्यके प्रभावसे पिशाच भाग जाता है. और सत्यके प्रभावसे देवताये रक्षण करती है. अर्थात सत्यवादीपर आये हुये संकट दूर करती है,
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माया व होइ विस्सस्सणिज्ज पुज्जो गुरुत्व लोगरस ॥ पुरिसो हु सच्चत्रादी होदि हु सणियल्लओव्व पिओ ।। ८४ ।।