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लाराधना
श्रावास
वचनं सुणादि थुणु । अयमयोग्यं न प्रवीति एतावता सत्यवतं पालितमिति आशा न कार्या । परेणोच्यमानमसवचनं शृपवतो मनोऽशुभतया च कर्मबंधो महानिति भावः ।
असत्य भाषणका त्याग करने के लिये ऊपर आचार्य ने उपदेशकिया अब मत्यवचनका स्वरूप कहते है..
4. अलल्य भान तिने प्रकार पर कह है उनके विरुद्ध जो जो भाषण है वह २ ह पकतुम बोलो. ज्ञान, चारित्रादिकों का उपदेश देनेवाला, असंयमसे पराथन करनेवाला, अन्य साधुजनोंको समय स्थिर करनेत्राला एमा भाषण हे क्षपका तुम चोलो. सामागिक, प्रतिक्रमण, वंदना स्तुति वगैरह आवश्यकों के कालके सिवाय अन्य समयको यहां काल समझना चाहिये अर्थात योग्य काल प्रसंगको जानकर प्रगट होनेवाला ऐस भाषणको यहां सत्यभाषण कहते हैं. ऐसा सत्य माषण हे क्षपक ! तू मितही वोल. वह भाषण भक्तकथा, राजकथा चोर कथा वगैरह विकथाओंसे वर्जित होना चाहिये. ऐसा भाषण तू बोल और अन्यका भी विकथावर्जित भाषण सुन. यह वक्ता अयोग्य बोलता नहीं है एतावता इसने सत्यग्रत पाला है ऐसा तूं मत समझ. वूसरेका असद्भाषण सुननेपरभी मन में अशुभ संकल्प उत्पन होकर महानकर्मबंध होता है ऐसा जानकर दूसरोंका असत्य भाषण हे वषक! तू मत सुन.
सत्यच्चनगुणं हृदरनिर्वाण ख्यापयति गायोत्तरा स्पष्टर
जलचंदणससिमुत्ताचदमणी तह णरस्स णिव्वाणं ॥ ण करंति कुणइजह अत्यन्जुयं हिदमधुरमिययणं ।। ८३५॥ नरस्य चंदन चंद्रचंद्रकातमणिर्जलम् ।।
न तथा कुरुते सौख्यं वचनं मध यथा ॥ ८५५ . सत्यवचन में हृदयको मुख देनेका गुण है इसका विवचन
अर्थ-पानी, चंदन, चंद्र, मोती, और चंद्रकांतमणि य पदार्थ लोगोंको उतना आनंद उत्पन्न करनेम असमर्थ हैं जितना आनंद अर्थयुक्त हितकर और मधुर भाषण उत्पन्न करता है. अर्थात् पानी, चंदन और चंद्रादिकास भी सत्यवचन जीवोंको अधिक आनंद देता है.