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________________ मूलापता १६८ Noorsa अर्थ-कर्केशवचन- गर्वयुक्त भाषण को कर्कशवचन कहना चाहिये ऐसा कोई आचार्य कहते हैं. कोई शक वचनको कर्कश्वचन कहते हैं. निष्ठुर भाषण दूसरोंके दोष दिलानेवाला वचन उपहासका वचन जो कुछ भी घट करना अभी बाचा बाक चाहेजसा बोलना गर्हित वचन ही है. वचनं निरूपयति जतो पाणबधादी, दोसा जायेति सावज्जवयणं च ॥ अविचारिता येणं घेणत्ति जहेवमादीयं ॥ ८१ ॥ प्राणिघातादयो दोषाः प्रवर्तते यतोऽखिलाः ॥ सावतो ज्ञेयं पविघारंभपर्णकम् ॥ ८४ ॥ बिजयोश्या-जत्तो पाणवधात्री दोला जयंतीति यस्माद्वचनातोः प्राणयधात्यो दोषा जायते । साववणं तं साधं वचनं तत् पृथिवीं खन । सहिनी पीतोदकांपना प्रत्य प्रसूनानि उचिनु इत्येवमादिकानि अविवा रित्ता अविचार्य किमेवं वक्तुं युक्तं ममेति । अथवा दोयोऽनेन वचसा नयति अपरीदय चोर चोरोयमिति कथनं । अर्थ - जिस भाषण से प्राणिहिंसा वगैरह दोष उत्पन्न होते हैं ऐसा भाषण बोलना उसकी सावद्य वचन कहते जैसे इस जमीनको खोदो, इस भैसने पानी पिया है अब इसको पानी से धो डालो- पुष्प तोडो. इत्यादिक वचनों को सावध भाषण कहते हैं. मेरा बोलना योग्य है या नहीं इसका विचार न करके अथवा ऐसे भाषण सदोष हैं या निर्दोष हैं कुछ विचार न करके परीक्षाके विनाही कह देना यह सब सावध वचन है. जैसे चोरको यह चोर है ऐसा कहना परु कडुयं वयणं वेरं कलहं व जं भयं कुणइ ॥ उत्तासणंच हीणमप्पियत्रणं समासेण || ८३२ ।। हासभय लोहको हप्पोसादीहिं तु मे पयतेण ॥ एवं असंतवणं परिहरिदव्वं विसेसेण ॥ ८१३ || आश्वा ६ ९६८
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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