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________________ आवास मूलाराधना अर्थ-इस वास्ते हे क्षपक! यदि तुम इहपर लोकमें दुःखको नहीं चाहते हो तो हमेशा जीचदरा करने में अपने चिचको स्थिर करो. प्रामुक भोजन ग्रहण करने में यदि अरति उत्पन्न हुई हो तो उसको दूर करो. क्षपकस्य स्वल्पकालवयपि अहिंसावतं करोत्यात्मनो महान्तमुपकारमित्याख्यानं कथयति पाणी चि पाडिहरं पत्तो छूढो वि सुसुमारहदे ।। एगण एकदिघसक्कदेण हिंसावदगुणेण ॥ ८२२ ॥ अप्येकाहपकेन प्रकृष्टः पातः पाणः प्रातिहार्य मुरेभ्यः ।। गनव प्राणिरक्षात्रतेन क्षिमः ऋरोऽनेकनकौघमध्ये ॥ ३१ ।। परांसपर्या ददती निरत्यये निबंशयन्ती बुधयाचित पदे ॥ करीन्य हिंसा जननीव पालिता मुखानि सर्वाणि रजांसि धुवती । ३ ।। इति अहिंसा विजयोदयाः-पाणी धि चंडालोऽपि पाडिहेरं माविहार्य पत्तो प्राप्तः । सुसुमारद शिशुमाराकुले न्हदे निशिसोऽपि । एक्केण हिंसायदगुणेण पकेनैव अहिसानताल्येन गुणेन । अप्पकालकदेन अल्पकालरुसेन ॥ आईसा ।। स्वल्पकालतक पाला जाने पर भी यह आहंसावत प्राणीपर महान् उपकार करता है-- अर्थ-शिशुमार हृदमें फेके गये चांडालने अल्पकाल तकही अहिंसा प्रतका पालन किया था परंतु वह इस व्रतके माहात्म्यसे देवोंके द्वारा पूजा गया. इस प्रकार आहिंसा व्रतका वर्णन पूर्ण हुआ. द्वितीयत्रतनिरूपणाय उत्तरप्रबंधः परिहर असंतवयणं सब्ब पि चदुन्विधं पयत्तेण ॥ धत्तं पि संजमितो भासादोसेण लिप्पदि हु ॥ ८२३ ॥ मुंचासत्यं वचः साधो! चतुर्भेदमपि विधा॥ संयमं विदधामोऽपि भावादोषेण याध्यते ।। ८३३ ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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