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________________ राधना आश्वास २२४ %ESMAD गोवंभणित्थिवधमेत्तिणियति जदि हरे परमधम्मो ॥ परमो धम्मो किह सो ण होइ जा सव्वभूददया ॥ ७९२ ॥ । गोस्त्रीब्राहमणबालानां धर्मो यद्यस्त्यहिंसनम् ॥ . न तदा परमो धर्मः सर्वजीवदया कथम् ।। ८२४ ॥ विजयोदया-- मोबमणिवियोनगिर्यात गवां, बामणानां, खोलो ब यधमात्रनिवृत्तियदि भवेदुत्कृष्टो धर्मः परमो धर्मः कथं न भवति या सर्व जीवदया । अर्थ-गोहत्या, ब्रामणहत्या, स्त्रीवध इनसे निवृत्त होना यदि, उत्कृष्ट धर्म समझा जाता है तो सर्व जीवापर दया करना यह उत्कृष्ट धर्म क्यों नहीं माना जायगा. हिंसानिवृति उपायन कारयंति कृतापकास बार भारतमीहते जनः । तस्परेषामसज्यामान्तरे पितपुत्रादिभावमुपागताना अंग ! मारणमयुक्तं इनि पदति-- सब्वे विय संबंधा पत्ता सब्वेण सबजीहिं ।। तो भारतो जीवी संबंधी चेत्र मारइ ।। ७९३ ॥ सवैः सर्वे समं प्राप्ताः संबंधा जंतुभिर्यतः॥ संबंधिनो निहन्यते ततस्तानिन्नता ध्रुवम् ।। ८२५ ।। विजयोदया-सधे पिय सऽपि च । सेबंधा संबंधाः प्राप्ताः । सम्वेण सर्वेण जोवेन । सबजीदि सर्पजीवः । तो तस्मात् । जीषो मारणोधतः संबंधित एवं घातयति ।। __उपायसे हिंसाका निषेध लोक करते हैं. अपने बंधुओंने अपराध किये होंगे तो भी उनको मारते नहीं. तो अनेक पूर्व जन्मोंमें जो पिता, पुत्र इत्यादिक संबंध को प्राप्त हुए होंगे ऐसे प्राणिओंको मारना क्या योग्य है ? नहीं इसका सष्टीकरण अर्थ--सर्व जीवोंका सर्व जीवोंके साथ पिता, पुत्र, माता इत्यादि रूप संबंध अनेक भवोंमें हुआ है. इसलिय मारनेके लिये उद्युक्त दुआ मनुष्य अपने संबंधी को ही मारता है ऐसा समझना चाहिये. जगतमें संबंधिओंका घात करना आतिशय निध माना जाता है.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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