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________________ मूलाराधना करनेवाले के विफल हो जाते हैं. शीलादिक आचार कमकी निर्जरा, और संवरके उद्देश्यसे किये जाते हैं परंतु हिंसा | करनेसे मुक्तीके उपायभूत संवर और निर्जरा व्यर्थ होते हैं. माश्वास ९१३ सव्वेसिमासमा हिंदयं मम्मी व सदसत्यागं ।। सव्वेसि वदगुणाणं पिंडो सारो अहिंसा हु ॥ ७९० ॥ आश्रमाणां मती गर्भः शास्त्राणां हृदयं परम् ।। पिंड नियमशीलानां समतानामहिंसनम् ॥ ८२२ ।। विजयोदया-सवेसिमासमाण सर्वेभामाश्चमाण हदयं । शास्त्रागां गर्भः। सर्वेगं अताना गुणानां च पिंडभूतः सारो भवत्याहिंसा ॥ - अर्थ-- यह अहिंसा मर्व आश्रमाका हृदय है, सर्वशास्त्रोंका गर्भ है, और सर्व व्रतोंका निचोटा हुआ जम्हा असञ्चवयणादिएहिं दुक्खं परस्स होदित्ति ॥ तप्परिहारो तला सव्वे वि गुणा अहिंसाए ।। ७९१ ॥ असूनृतादिभिर्युःख जीवानां जायते यतः ।। परिहारस्ततस्तेषां अहिंसाया गुणोऽखिलः ।। ८२३ ।। विजयोवया-जमा असमनवयणादिगेहि यस्मादसत्यवचनेन, अदत्तादानेन, मैथुनेन, परिग्रहण च परस्य दुःस्व भवति । तस्मात्तेषां असत्यवचनादीनां परिहार इति सर्वेपि अदिसाया गुणाः ॥ अर्थ ---असत्य बोलनेसे, न दी हुई वस्तु लेनेसे, मैथुनसे और परिग्रहसे परको दुःख उत्पन्न होता है. परंतु अहिंसाके पालनेसे इन सब दोषोंका त्याग होता है. अतः सत्यवचनादिक अहिंसाके ही गुण हैं ऐसा समझना चाहिये.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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