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________________ 'मूलाराधना भाषा: 24NDHICE विजयोक्या-कुश्वनस्स वि जसं यत्नं कुर्वतोऽपि । पिंडीमतरेण यथा न तिष्ठन्त्यराणि । अरर्षिना नेम्यवस्थानं चक्रस्य यथा नास्ति। तह जाण अहिंसाए विणा ण सीलाणि टंति सब्बाणि ॥ तिरसेव रक्खण; सीलाणि बढ़ीव सस्सस्स ॥ ७८८ ॥ तथा शीलानि तिष्ठन्ति न बिना जीवरक्षया ॥ तस्याः शीलानि रक्षार्थ सस्यादीनां यथा वृतिः ॥ ८२० । विजयोदया-तह आण उथैष जानीहि । महिसां विना सर्वाणि शालानि न तिष्ठनि । अहिंसाया गव रक्षार्थ शीलानि वृत्तिरिव सस्पस्य । अर्थ-कितनाभी प्रयत्न करो तुंबीके विना चक्रके आरे नहीं रह सकते हैं, वैस अहिंसाके विना सर्व शीलोंका पालन करनेका कितना भी प्रयत्न करो उनका पालन नही किया जायगा. अर्थात अहिंसाके बिना शीलकी स्थिति नही है, जैसे धान्यके रक्षणार्थ बाद लगाते हैं तथा अहिंसाके रक्षार्थही शीलवत हैं. कितना भी प्रयत्न करो आरे न होंगे तो नेमीकी स्थिति नही होती है वैसे अहिंसाके विना शील नहीं टिक सकते हैं. -- . . - - अहिंसावतमंतरणतरषां नष्फस्यमाचऐ-- सील बदं गुणो वा णाणं णिरसंगदा सहचाओ ॥ जीवे हिंसंतस्स ह सव्वे वि जिरत्थया होति ॥ ७८२ ।। व्रत शालं तपो दान मैग्रन्ध्यं नियमा गुणः ।। सर्वे निरर्थकाः सन्ति कुर्वतो जीवहिंसनम् ।। ८२१ ।। विजयोदया-शीलादीनि हि संपरनिर्जरा चोदिश्यानुष्ठीयते । हिंसायां नु सत्यां न स्तः फलभूते संवरनिर्जरे मुक्त्युपायभूते इति निष्फलता मन्यते । अहिंसाके बिना इन व्रतोंको निष्फलता प्राप्त होती है ऐसा कथनअर्थ-शील, उत, गुण, ज्ञान, निष्परिग्रहता, और विपसुखका त्याग ये सर्व आचार जीवहिंसा
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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