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________________ लाराधना आश्वासः २३४ विजयोदया-तण्टाछुदादिपरिवायदो वितृषा, क्षुधा, रोगेण शीतेन, आनपेन बाधितोऽपि सन् ! जीवाण घावर्ण किश्मा जीयानामुपधातनं कृत्वा । पडिमार कार्बुजे तुडादीनां प्रतिकारं कर्तुं । तं मा बितेति मा कार्यश्चित्तं । लभसु सुदि लभस्व स्मृति । पियामि हिमशीतलं जलं कर्पूरक्षोस्यासितं । अगाध या सरः सुरभितरोत्पलरजोरगुठितं प्रविश्य माघसिंधुर व निमजनोगमज्जने करोमि । ललाटे, शिरसि, धुले चोरःस्थल करकप्रकगनिपातो यदि म्याइदं भवेत् । कल्हारसिकताधिकपल्लवशयनाम्लिामचा जीवामिनि बा । आननिमा दिवानिश तप । अपसारिततीक्षाकरकरनिकुरुंयमिति व्यजनतान्तसमुपनीनशीतमारुतपातेन प्रयमशेपमपाकुपतु भवन्तः । हिमानी पततु । यति मातरियान इति वा । भ्राष्ट्रपक्कानपूपान्सुरभिघृप्तान मक्षयामीति । सम्यफ कथितं. क्षीरं शर्करामिश्रं सुखो पियामीति च । धगधगावमानं खाविमग्निं कुरुत शीतन स्फुटन्ति ममोगानि इत्येवमाविका प्रतिक्रिया मनसि न कार्येत्यर्थः । असद्वंद्योदयः स नो महानिति निपतति, को नु तस्य प्रतीकारः? तपशमकालभाविन पव बाह्यद्रव्यसंपाद्याः प्रतीकारा इति मनो निधेहि ॥ अर्थ-प्यास, भूख, रोग, शीत, उष्ण, इत्यादिकसे तुमको पीडा होने पर भी तुम जीवोंका घातकर प्यास वगैरहको मिटाने का प्रयत्न करनेका विचार कभी मनमें मत लाओ. ऐसे दुःखके समय आगमके बचोंका स्मरण करो और आगे कहा हुआ विचार मनमें मत लाओ. कापूरका चूर्ण डालकर सुगंधित किया हुआ, वर्फके समान शीतल जल मैं पीऊं, अथवा सुगंधित कमलरजोसे व्याप्त ऐसे अगाध सरोवरमें मत्त हाथी के समान प्रवेश कर निमज्जन करके स्नान करू; ललाट, मस्तक, विशाल छाती इनके ऊपर ओलेका समुदाय पडेगा तो बहुत ही आल्हाद होगा, कमल, शीत वालुका, कोमल कोपल, इनका किया हुआ बिछाना यदि मेरेको सोनेके लिये मिलेगा तो मे जीऊंगा अन्यथा मेरे प्राण चले जायेंगे ऐसा विचार मनमें नहीं करना चाहिये. रातमें और दिनमें प्यास मेरेको सताती है इसवास्ते सूर्यके तीक्ष्ण किरणों को यहाँसे दूर करो. परवा वगैरहके द्वारा ठंडी हवा करो और मेरा संपूर्ण श्रम आप दूर करो. बर्फ वृष्टि होवो, वायु बहने दो. ऐसा विचार नहीं करना चाहिये. कढाईमें तले हुए, सुगंधित घृतसे गीले हुए अपूप मैं भक्षण करूंगा, अच्छी तरहसे पका हुआ, खांडमिश्रित सुखोष्ण ध में पिऊंगा ऐसा विचार नहीं करे. धगधग करता हुआ खरका अग्नि जल्दी तयार करो. मेरे सर्व अंग थंडीसे फूट रहे हैं इस प्रकार के इलाजके विचार क्षपकको मनमें करना योग्य नहीं है. मेरे ऊपर असाता वेदनीय कर्मका बहा रोष हुआ है उसको क्या इलाज है, जब उसका उपशम होनेका समय आवेगा तब बाह्य पदार्थोंके द्वारा इलाज हो सकते हैं ऐसा मनमें विचार करना चाहिये. नहीं करनारको सोने पहास BRATE
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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