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________________ मूलारावना ९३० जइदा खंडसिलोगेण जमो मरणा दु फेडिदो राया ॥ पतोय सामण्णं किं पुण जिणउससुतेण || ७७२ ॥ संगम लोकन/निवार्य मरणं यमः ॥ यदि नीतस्तदा किं न जिनसूत्रेण साध्यते ॥ ८०२ ॥ विजयोदया -- जइदा खंडसिलोगेण यदि तावत्खंडन लोकस्य । जमो राया भरणादो फेडिदो यमराजा मरणा दपसारितः । पप्तो य सुसामण्णं प्राप्तब्ध शोभनं श्रामण्यं । किं पुण जिणउत्तसुते । किं पुनर्जिनोकसूत्रेण प्राध्यफले भावर्य । वाच्यमत्रायानकं च तदुक्तं भवा- अनघेन जीवितार्थिना यत्किं चिदुक्तं वचनं श्रुत्वा हास्यपरेण राचा भाव्यमानं वद्यापत्सारणे निमित्तं विदयवेदिनां वचो भाध्यमानं किमभिलषितं न प्रापयति । अर्थ-यम नामक राजा लोकके खंडका स्वाध्याय करने से मरणकी आपत्तीसे मुक्त हुआ और उत्कृष्ट नास्त्रिको भी प्राप्त हुआ. स्वयं बनाये लोकखंडसे भी वह आपत्तीथे मुक्त होकर उज्ज्वल चारित्रको प्राप्त हुआ तो जिनके अध्ययन से उत्कृष्ट फल अर्थात् मोक्ष क्यों न मिलेगा. ( इस यमराजाकी कथा आराधनाकथाकोष में देखो ) जैसे एक राजाने भीख मांगनेवाले एक अज्ञ अंधेका बचन सुनकर इसीसे कंठस्थ किया. उस वचन से उसके ऊपर आई हुई आपत्ति टली. एक अंधेका वचन भी आपत्ती दूर होने में निमित्त होगया तो विश्वके समस्त पदार्थ जाननेवाले जिन भगवान के वचनोंका अभ्यास करनेसे क्या अभिलपित पूर्ण न होगा ? अवश्य पूर्ण होगा. स्वरूपस्यापि तस्य भावना मरणकाले महाफलं दातीत्येवं तत्कथयतिसुप्पो सूलदह पंचणमोक्कारमेत्त सुदणाणे || उवजुती कालगढ़ो देवो जावो महडीओ || ७७३ ॥ सूपse शूलस्था जातो देवो महर्द्धिकः ॥ नमस्कारश्रुताभ्यासं कुर्वाणो भक्तितो मृतः ॥ ८०३ ॥ विजयोदया- सुप्पो खूलो सूप नाम चौरः शूलमारूढः । पंत्रण मोक्कारमेत सुदणाणे उवजुतो आश्वारः ६ ९.३०
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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