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मनाराधना
उत्पन्न करनेवाला संयम और इन तीनोंका संयोगरूप मोक्ष जिनका स्वरूप जैनागममें कहा है ज्ञान उन सबको जानता है.
भाचाह:
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णाणं करणविहूर्ण लिंगग्गहणं च देसणविह्वर्ण ।। संजमहीणो य तबो जो कुणदि णिरत्थयं कुणदि ॥ ४७० ॥ णाशुज्जोएण विणा जो इच्छदि मोक्खमग्गमुवगंतुं ॥ गंत कडिल्लमिच्छदि अंधलओ अंधयारम्मि ॥ ७७१ ।। करणेन विना जानं संयमेन बिना तपः॥ सम्यक्त्वेन विना लिंग क्रियमाणमनर्थकम् ।। ८०० ॥ ज्ञानोद्योतं विना योऽत्र मोक्षमार्गे प्रयास्यति ।।
प्रयास्यति बने दुर्गे सोऽन्धोऽन्धतमसे सति ।। ८०१॥ विजयोदया- णागुनोरण विणा शानोद्योनेज घिना | जो इच्छवि यो चांदति । मोवमरगमुषगंतु चारित्र नगदम्य इह मोक्षमार्ग दम्युच्यते नावि तपश्चोपदा । न् कडिालमिटिगं दुर्गमिडनि । कः ? धनश्रो अधः । अंधमार्गमा धमनासि । यथा वृक्षगगुरुमादिनिधिने प्रदेश गान अनिदुरकर अप्रकाश सनि । नन्तिसादिपरिहागे जीवनिकायाकुले. दुष्कर इति मन्यते॥
अर्थ- चारित्रहीन ज्ञान, सम्यग्दर्शनरहित मुनिदीक्षा धारण करना, संयमरहित तप करना, ऐसे कार्य व्यर्थ है, अर्थात् इससे मोक्षकी प्राप्ति होती नहीं. अर्थात् चारित्रसहित ज्ञान और प्राणिमयम और इंद्रियसंयम सहित तप करना चाहिये, सम्यग्दर्शनसहित मुनिदीक्षा धारण करनी चाहिये तब मोक्षकी प्राप्ति होती है..
अर्थ-- ज्ञानरूपी प्रकाश अर्थात ज्ञानदीपकको त्याग कर मोक्षका उपायभूत ऐमा चारित्र और तपकी प्राप्ति करने की जो इच्छा करता है वह अंधकारमें वृक्ष तृणादिकोंस व्याप्त ऐगे दुर्गमप्रदेशम प्रवेश करने वाले । अंधमनुष्य के समान समझना चाहिय. जैस जीयोंग भरे हुए प्रदेशाम हिंसादिकोंका परिहार करना कठिन है बसे । शानक विना मोक्षमार्गकी प्राप्ति कर लेना कठिन है,