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________________ आवास: मूलाराधना ९२७ यस्मारक्षानाम्यासे सति मनोमर्कटको दोषं गशुभपरिणाम न करोति तमा णाणुवओगो खवयस्स विसेसदो सदा भणिदो ॥ जह विंधणोबओगो चंदयज्झं करंतस्स ।। ७६६ ॥ ज्ञानाभ्यासस्ततो युक्तः क्षपकस्य विशेषतः ।। विवेध्यंकोजस्तस्य पदकामधन गया । ७९६ ।। विजयोदया-तला णाणुषमोगो तस्माज्ञानपरिणामः । यास्स बिसेसदो सदा भाणदो भपकस्य विशेषतः सवा निरूपितः। जय सिंधणीवोगो यथा व्यधनाभ्यासो विशेषतो मणितः । कस्य ? चंदयवेमं करंतस्स चंद्रकषेधं कुर्यतः। ज्ञानाभ्याससे पह मनोमर्कट अशुभ परिणाम नहीं करेगा ऐसा कथन अर्थ --चंद्रक यंत्रका बेघ करने की इच्छा रखनेवाला वीर पुरुष जैसे हमेशा लक्ष्यवेध करने का अभ्यास करता है. वैसा मनोमर्कट वश करनेके लिये हमेशा क्षपक को ज्ञानाभ्यासकी आवश्यकता है, णाणपदीओ पज्जलइ जस्स हियए बिसुद्धलेस्सस्स ॥ जिणदिठमोक्खमग्गे पणासणभयं ण तस्सत्थि ॥ ७६७ ॥ शुद्धलेश्यस्य यस्यान्ते दीप्यते ज्ञानदीपिका ॥ तस्प नाशभयं नास्ति मोक्षमार्गे जिनोविते ।। ७९७ ॥ विजयोचा-गाणपदीभो ध्यानप्रदीपः । पज्जल प्रज्वलति । यस्य विशुद्धलेश्वस्य हवये । तस्य संसारापर्ते पतिरवा दिनष्टोऽस्मीति विनाशभयं नास्ति । जिदिमोक्खमग्गे जिनहरे श्रुते रत्नत्रवृत्तिरपि मोक्षमार्गशब्द ह श्रुतवृत्ति हाः॥ अर्थ--विशुद्ध परिणामयुक्त ऐसे जिसे क्षपको हृदयमें ज्ञानरूपी दीपक सतत प्रकाशमान रहता है उसको जिनेश्वरने कहे हुए आगम में नए होनेका भय नहीं रहेगा. अर्थात् सतत ज्ञानाभ्यास करनेसे जीवा दिक पदार्थीका जैनशास्त्रमें जो नयोंके आधारसे अनेक अपेक्षाओं को लेकर स्वरूपवर्णन किया है उसका खूप खुलासा होगा. परंतु जिसको ज्ञानाभ्यास नहीं है उसको जिनागमका रहस्य मालूम न होगा.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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