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________________ मूलारापना आवास: ९२५ अर्थ-योग्य विधीसे साध्य किया हुआ मंत्र प्रयोग करनेपर कृष्णसर्पको वश करता है, अर्थात् मंत्रके प्रभावसे क्रोधसे फुत्कार करनेवाला सर्प शांत होकर मांत्रिकके वश होता है, वैसे यह हृदय रूपी कृष्ण सर्प भी उत्तम प्रकारसे प्रयुक्त किये ज्ञानपरिणामके द्वारा पेश किया जाता है. पहिली गाथासे ज्ञान अशुभ परिणामोंको निग्रह करनेमें कारण है यह दिखाया है. दुसर्ग गाथाक द्वारा चित्त स्ववश करनेका उपाय दिखाया है. अर्थात् बानभावसे चित्त वश होता है ऐसा कहा है, और प्रस्तुत गाथासे ज्ञानभावना-ज्ञानाभ्यास अशुभ परिणामोंकी प्रशांति करता है यह बताया है. STHAN आरण्णवो वि मत्तो हत्थी णियमिजदे वरत्ताए ॥ जह तह णियमिजदि सो जाणवरचाए मणहत्थी ॥ ७६३॥ नियम्यते मनोहस्ती मत्तो ज्ञानवरत्रया ॥ हस्ती वारण्यकः सद्यो भयदायी वरत्रया ।। ७९३ ॥ विजयोन्या-आरगणचो वि मत्तो हत्थी अरण्यचारी मत्तो इस्ती। नियमिज घरसाप नियभ्यते निरुप्यते वरप्रेण यथा । तथा मणहत्थी मनोहस्ती नियम्यते । णावरत्ताप सानयरत्रेण । प्राणिनामहितकारितया, दुर्निवारनया च मनो हस्तीवेति मनोहस्तीति भयंत । ज्ञानमशुभमवाहं निरुणद्धि । इत्यनयोच्यते । अर्थ-अरण्यमें खच्छंदपनासे बिहार करनेवाला मत्त हाथी जैसे भजपूत शृंखलासे बांधा जाता है वैसे यह मन प्राणिओंका अहित करता है और दुर्निधार है अतः यह हाथी के समान होनेसे इसको हाथी कह सकते हैं. यह मनरूपी हाथी ज्ञानरूपी श्रृंखलासे बांधा जाता है, अर्थात झान अशुभसंकल्पोंके समूहको रोकता है, मनमें ज्ञानके प्रभाव से अशुभ संकल्प उत्पन्न नहीं होते हैं. ९२५ ज्ञानयरषया नियमितस्य मनोव्यापार निरूपयत्युत्तरमाथा जह मक्कडओ खणमवि मज्झत्थो अस्थि, ण सकेइ ॥ तह खणमवि मज्झत्यो बिसएहिं विणा ण होइ मणी ।। ७६४ ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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