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आश्वास
मलाराधना
भाराहयभत्ती आराधकेषु आईदादिषु भत्ती भक्तिः । णाणचरणदसणतयाणं शानस्य, दर्शनस्थ, चारित्रस्य, तपसच निष्पादिका भवति ।
अर्म-धान्य उत्पन्न करनेके संपूर्ण कायाँका आश्रय कर जमीन में वीज बोनेके अनंतर जलवृष्टि होनस फल निष्पचि हो . से अईदादि पूज्य पुस्लीवर मात करनस शान, दर्शन, चारित्र, और तपरूपी फल उत्पत्र होता है.
भक्तिमाहारम्य फळातिशयोपदर्शनेन कथयितुकामोऽधाक्यानमुपक्षिपति गाधायाम्
( वंदणभत्तीमितेण मिहिलाहिओ य पउमरहो ॥
देविंदपाडिहेरं पत्तो जादो गणधरो य ॥ ७५२ ॥ ) वंदनाभक्तिमात्रेण पनको मिथिलाधिपः ।। देवेंद्रपूजितो भूत्वा बभूव गणनायकः ।। ७८१ ।। रोगमारिचीरवैरिभूपभूतपूर्वकाणि ।। भक्तिराश दुःखदा निहन्ति सविताऽखिलानि ।। ७८२ ॥
इति भक्तिः । विजयोदया-वंदणभसीमित्तण वंदनानुरागमात्रेण चैव। मिहिलाहियो य पउमरहो मिथिलानगराधिपतिः पभरथो नाम । देविंदपाडिहरं पत्तो देवेंद्रफतां पूजा प्रापवान् । जादो गणधरो य गणधरन जातः । भत्ती ।।
विशिष्ट फलका प्रदर्शन करके भक्तिका माहात्म्य कहने की इच्छा आचार्य उदाहरण देते हैं---
। अर्थ-वंदना करनेकी तीन भक्तीसे मिथिला देशका राजा पधरथ देवेंद्रसे पूजातिशयको प्राप्त हुआ | और यह वासुपूज्य तीर्थकर का गणधर हुआ. भक्ती का वर्णन हुआ.;
आराधणापुरस्सरमणपणहिदओ विसुद्धलेरसाओ ॥ संसारस खयकरं मा मोचीओ णमोकार ।। ७५३ ॥