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________________ मुकारापना आभास अग्गिबिसकिण्हसप्पादियाणि दोसं करंति एयभवे ॥ मिच्छत्तं पुण दोसं करेदि भवकोडिकोडीसु ॥ ७३.॥ विषाग्निकृष्णसायाः कुर्वन्त्येकत्र जन्मनि ।। मिथ्यात्वमावहद्दोष भवानां कोटिकोटिषु ।। ७५८ ।। विजयोवा--सम्न्याधिभिः क्रियमाणस्य अस्पतां मित्राणोन संपायर इससस्नुपरवाया । ज. म्यादीन्येकमयदुःखदानि मिथ्यात्वं पुनदो करोति भवानो कोटीकोटी ॥ मूलारा--स्पष्टम् ।। अर्थ-अग्नि: विप और काला सर्प वगैरह पदार्थोसे जीवकी हानि एक ही भवमें हो सकती हैं परंतु मिथ्यात्वसे अनेक कोटिकोटिभवों में हानि होती है. AAP मिछत्तसल्लविद्धा तिव्बाओ बेदणाओ बेदति ॥ विसलित्तकंडविडा जह पुरिमा णिप्पडीयारा ।। ७११॥ विडो मिथ्यात्वशल्येन हीनां प्राप्नोति वेदना ॥ कांडेनव विषाक्तन कामन निःप्रतिक्रियः ।। ७५९ ।। विजयोदया-मिच्छत्तसविता मिथ्यावारुपेन शाहयन बिदाः । तिव्याश्रो वेदगाभो तीमा घेदनाः । वेदति अनुभवन्ति । विसलिसकंचिद्धा विलिन शरेया विद्धाः । जयथा । पुरिसा पुरुषाः । णिप्पडीयारा निष्प्रतीकाराः॥ मिथ्यात्वतमपकारं दर्शयति--- मलारा-- वेदन्ति अनुभवति | जिपदीवारा प्रतीकाररहिताः । अचिकित्स्याः संत इत्यर्थः ।। अर्थ--विपलिय माण बरीर में घुसनेपर उसका चिप सर्व शरीरमें पसरकर मनुष्प प्राणरहित होता है. अर्थात् उस पुरुषपर कुछ इलाज हो नहीं सकता, बैमा मिथ्यात्वशल्यमे विद्ध हुए मनुष्य तीव्र वेदनाओंका अनुभव लेते है. जरवाजा
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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