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मुलाराधना
आश्वास
मिथ्यात्वजन्यमोहमाहात्म्यप्रख्यापनाया
मिच्छत्तमोहणादो धत्तूरयमोहणं बरं होदि । बढेदि जम्ममरणं दसणमोहो दु ण दु इदरं ।। ७२७ ॥ मिथ्यात्वमोहतो तोवर कमकमोहनम ।।
दत्ते मृत्युसहस्राणि प्रथमं न पर पुनः ।। ७५६ ॥ विजयोदया-मिच्छ तमोरणादो मिथ्यात्वजन्यान्मोहात् । धतूरयमोहणं उन्मसरससेधाजनितमोहन बरं होदि शोभनं भयति । कथं ? वटेदि वर्धयति । जम्ममरणं जन्ममरणं च विचिधासु योनिषु । किं दसणमोहोदर्शनमोहजन्यः कलंकः । ण दुरवर जम्ममरणं घडेदि नैव धत्तुरकमोहन जन्ममरणपरंपरा आनयति कतिपयदिनभाविभोहसंपादनोचतं अनंतकालषतिपरीत्यजननक्षम मोद्दनं अतिशयेन निकमिति भावः । ततो जन्मरणप्रवाहभीरुणा भवता त्याज्य मिथ्यात्वं इति ।
मिथ्यात्वजन्यमोहमहिमानमावर्शयति---- मूलारा--बहेदि वर्धयति ।। मिथ्यात्वसे उत्पन्न हुए मोहके माहात्म्यका आचार्य कथन करते हैं
अर्थ-मिच्यादर्शनसे जो मोह परिणाम उत्पन्न होता है उससे धत्तुरका सेवन करनम उत्पन्न हुआ मोह अर्थात् उन्मनपना अच्छा है ऐसा हम समझने हैं, क्यों कि दर्शनमोड़नीबसे उत्पन्न हुआ मोह अनेक योनी आम जन्म गरणोंकी याद करता है. परन्तु बदर खानम उत्पमा पागलपना जन्ममरणको नहीं बढाता है. तथा वह थोड दिनपर्यंतही जीवमें रह सकता है. इसलिये अनंतकालनक पदार्थों का विपरीत स्वरूप दिखानवाला दर्शन मोहजन्य मोहपरिणाम अत्यंत निकृष्ट है ऐसा समझाना चाहिये. जन्म मरण के प्रवाहसे डरनेवाले हे क्षपक न एस दुष्ट मिथ्यात्वका त्याग कर.
ननु प्रांगव परित्यक्तं मिथ्यात्वं तकथं इदानी तत्यागोपदेश इत्यत्राशिकायामाह
जीवो अणादिकालं पयत्तमिच्छत्तभाविदो संतो । ा रमिज्ज हु सम्मत्वे एत्य पयत्तं खु कादच्वं ॥ ७२८ ॥