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________________ मूलाराधना नाबार यामा आन्तः क्षमावलांस्त्रधा निस इस प्रकार क्षपकका उदर शोधनेपर क्षपकके द्वारा कोनसी क्रिया निर्यापक सरि कराते हैं इसका विवेचन अर्थ- यह क्षपक अब अशन, खाद्य और स्वाय, ऐसे तीन प्रकारके आहारोंका आमरण त्याग करता है ऐसा निर्यापक आचार्य संपूर्ण संघको विदित करते है. खामेदि तुम खबओत्ति कुंचओ तस्स चेव खवगस्स ।। दावदेव्यो णेदूण सव्वसंघस्स वसधीसु ॥ ७.५॥ क्षपको वोऽखिलास्त्रेधा निःशल्पीभूतमानसः॥ क्षान्तः क्षमयते भक्ताः ! क्षमागुणविचक्षणः ॥ ७३३ ।। मिल्योदयामादिगा काहयति । मुझ युष्मान् । खयगोत्ति क्षपक इति । तस्ल नेब सखगस्स तस्यैव क्षपकस्य । कुँचगो प्रतिलखनं । वादग्यो दर्शयितथ्य खूण नीस्वा । सवसंघस्स यसदीप सर्वसंघस्य वसतीषु। सूरिणा संघस्य निवेदनविधिमाह मूलारा-खामेदि मां भाइयति । तुम्ह युष्मान् । कुषगो प्रतिलेखनं । दावेदब्धो क्षमयसि युष्मानक्षपक इति भापमाणेन ब्रह्मचार्यादिना सर्वसंबवसतिषु नीत्वा तत्प्रतिलेखन मूरिणा दर्शयितव्यमित्यर्थः ।। अर्थ--यह पक आप सब लोगोंको क्षमा ग्रहण करनेकी प्रार्थना करता है इस अभिप्रायका भाषण सर्व संघमें जाकर आचार्य ब्रह्मचारीके हाथमें क्षपककी पिच्छी देकर कहते हैं. और वह पिच्छिका सबको दिखाते हैं. अर्थात् क्षपक सर्व मुनिओक पास जा नहीं सकता है इसलिये उसकी पिच्छिका सबको दिखाकर चपक आप लोगोंसे क्षमा चाहता है ऐसा आचार्य कहते हैं, तेन संघेन शातक्षपकाभिप्रायेण कर्तव्यनित्यायले-- आराधणपत्तीय खवयस्स वणिरुवसग्गपतीय ॥ काओसग्गो संघण होइ सब्वेण कादन्वो ॥ ७०६ ॥ आराधनास्य निर्विघ्ना सम्यक संपद्यतामिति ॥ स याति सकलः संघस्तनूत्सर्गमसंभ्रमम् ।। ७३४ ॥ ८८५
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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