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________________ H आश्वास मूलाराधना ८८३ विजयोदया-भायंबिलेण आवाग्लेन । सिंभं स्वीयदि एलेष्मा अयमुपयाति । पित्तं च पितं च । उवसमं जादि उपशममुपयाति । यादस्स यातस्य 1 र.पत्रण, रक्षणार्थ । एत्य अत्र । पयत्त ख काय प्रयत्नः कर्तव्यः ।। कफपित्सवात्तप्रतिकारोपायमाह--- मूलारा--सिंभो नीयदि उलेमा क्षयम्पयति । रक्षण प्रबोपनिवासणा ! UPथ अन्यामचमत्यूके क्षपके । पयनं प्रकृष्टो यत्नः । येन पात: कुपिराः प्रशाम्यति न वा न दुनिया आयुषंदानुसारणोपक्रमः कम्य एवान्नाधीनस्वास्पित्तधातुमलादीनाम् ।। ___ अर्थ --आचाम्लसे कफ का क्षय होता है. पित्तका उपशम होता है और वातका रक्षण होता है अर्थात् उसकामी प्रकोप होता नहीं इसलिये आचाम्लमें प्रयत्न करना चाहिय. अर्थात् इतर पानकोंकी अपेक्षासे आचाम्ल पानक क्षपककी प्रकृति को अनुकूल होता है इसलिये क्षपक विशेषतासे इसको उपयोगमें लावे. ARITTENTREPRESENTENTRESTERSTANT पामभावनोत्तरकालभाषिन व्यापारं दर्शयति तो पाणएण परिभाविदरस उदरमलसोधणिच्छाए मधरं पज्जेदवो मंडं व विरेयणं खबओ ॥ ७०२॥ ततोऽसौभाषितः पान ठरस्य विशद्धये ।। मलस्य मधुरं मंदं पायनीयो विरेचनम् ॥ ७३०॥ विजयोदया-तो पश्चात् । पाणगेण पानेन । परिभाविदो भावितः क्षणकः । मधुरं पन्जयो मधुरं पाययि. तव्यः । किमर्थ ? उवरमलसोणिच्ए उदरगतमलनिरासाय ॥ पानकसंस्कारोतरमुपक गाथाद्वयेनाइमूलारा---पडोक्यो पाययितव्यः ।। पानभावनोत्तर क्या क्रिया करनी चाहिये इसका वर्णन अर्थ-पानक पदार्थका सेवन करनवाले क्षपकको पेटके मलकी शुद्धि करने के लिये मांडके ममान मधुर रेचक औषध देना चाहिये.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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