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________________ अाथ मूलाराधना -com ८८२ n कतिप्रकारं गानफमित्यारेकायामाचरे सत्थं बहलं लवडमलेण्डं च ससिस्थयनसित्थं ।। छविह पाणयमेयं पाणयपरिकम्मपाओग्गं ।। ७००। लेपालपघनस्वच्छसिक्थासिक्थविकल्पतः॥ पानकर्मोचितं पानं पोहेदं कथितं जिनैः ॥ ७२८ ।। विजयोदया-सस्थ स्परछ ग पान उणोदय सोधी । नितिमीफाफारसप्रभृतिर्फ न अन्यल। दध्याविक देवडं लपमहित । बलबई अलपसदित यन्त्र हस्तानलं चिन्तिपनि । ससित्वगं सिक्वहित, अभिग सिक्थरहित । छद्धा पोटापाणगभेदं पतन्यामकमेका परिकामपामो पानकास्यतिकर्मपायोग्यं । __ अवं कृताहारपरिहारगोनोगम्य अपकस्य सत्प्रवासगानविधान गाथादशकनोपदेवन्पूर्व तयोग्यानुपानकिकरपानिर्दिशति मूलाग--सर्छ स्वच्छ गोदकादिकं । बहलं काजिकद्राक्षापान कातितिदीकाफिलरमादिक । लाई हम्नतललेपि दाधचोलादिक । अलेवर्ड मंडमथितादिक । ससिगं प्यादिकं । असिन्छ मुद्रसूपादिक । उद्धा पोटा। पानकके कितने प्रकार हैं इस प्रश्नका उत्तर -- अर्थ स्वच्छ यह एक पानकका प्रकार है. गरम पानी, वगैरहको स्वछ कहत हैं. वहल-कांजी, द्राक्षारस, इमलीका गार, वगैरह गार पानक. लेबर जो द्वाथको चिपकता है एसा पतला पदार्थ दही वगैरह, अलेवड-हाथको न चिपकनवाला गांड ताक वगैरह, सिक्यसहित-जिसमें भास के सिक्थ रहते है ऐसा पानक अर्थात मांड सिक्थग. भातके सिवथ जिसमें नहीं हैं ऐसा मांड आँसक्थग एसा छह प्रकारका पानक आगम में कहा है. आय चिलण सिंभं स्वीयदि पित्तं च उत्सम जादि । वादस्स रक्खण8 एत्थ पयत्तं खु कादव्यं ॥ ७.१ ।। आचाम्लेन क्षयं याति श्लेष्मा पित्तं प्रशाम्यति ॥ परं समीररक्षार्थ प्रयत्नोऽस्य विधीयताम् ॥ ७२९॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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