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सुमाराधना
आखासा
अर्थ-कोई क्षपक दिखाया हुआ आहार भक्षण कर उसके स्वादिष्ट रसमें लुब्ध होकर उस संपूर्ण आहास्को वारंवार भक्षण करने की इच्छा रखता है. अथवा उसमेंसे किसी एक पदार्थ को वारंवार खानेकी अभिलापा करता है.
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तत्थ अवाओवायं देसेदि बिसेमदो उवदिसतो ।। उद्धरिदु मणोसलं सुहुमं सणिवत्रमाणो ॥ ६९६ ।। कुरुते देशना सरिरायापायविशारदः ॥
निराकर्तुं मनःशल्यं सूक्ष्म निर्यापयन्नमुम् ॥ ७२४ ।। बिजयोदया- तत्थ तत्राहारासको जातायां । अवाभोपायं इंदियलयमस्यापायं, असंयमस्य च दौकने । दसेदि वर्शयति । विसेसदो विशेषेण । उदिसतो उपदिशन् । उदरिदुं उद्धतं । मोसलं मनःशस्थ । सुदुमं सूक्ष्मं । सण्णिायघमाणो सम्यक् प्रशमयन् ।।
अथैवं मनोज्ञाहाररसगृद्धषनुबंधात्मकशल्योद्धरणपूर्षिका अपफस्य हानि गाथाचतुष्टयेन ब्याचक्षाणः पूर्व तारक शल्यातस्य तस्य निर्वापकायायेण प्रयोक्तव्यं प्रतिविधानमभिधत्ते--
मूल रा--तत्य तस्यां मनोनाहाररसासक्ती अपकस्य जावायां ! अपायोपाये अपायमिद्रिय संयमविनाश, उपापंच तसंयमढीका । बिसरायो उसदिसतो 'नाजितेन्द्रियस्य कापि कामिद्विरस्तीति'।"अंधादर नहानधो विपयांची कमेश्रणः । चक्षुपांपो न जानाति विपयांशी न केनथिन्,” || इस्येवं प्रायेण विशेषणोपदेशं कुर्वन् । उदरिदु उद्धत उत्पादयितुं । रणोला चित्तगत भोजनगृद्धिलक्षणं घोरदुःखकारण । सुहम सूक्षा गुणापि तदैयोपलधगीयत्वात् । संणियमागो सम्यक श्रीगयन्शनोत्पादनेन शीतयन्नित्यर्थः ॥
अर्थ--जय आहार में क्षपककी आसक्ति हो जाती है तब अभिलापा रूपी सूक्ष्म मनाशल्यको निकालनके लिये आचार्य शांततास उसको विशेष रीनीसे उपदेश करते हैं, उपदेशमें बे आहारकी गृद्धीसे इंद्रियसंयम की हानि होती है और असंयमकी वृद्धि होती है ऐसा विशेषरीतीसे कहते हैं. जिसने इंद्रियोंको ताव में नहीं रखा है वह कछ भी कार्य सिद्ध नहीं कर सकता है, विषयांध मनुष्य अधसे भी अन्धा है, आखोंसे अंधा पुरुष केवल पदार्थों को
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