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________________ --- मूलाराधना आश्वान -- अर्थ-क्षपकमुनि प्रस्याख्यान, प्रतिक्रमण गरेह आवश्यक कर्तव्य प्रथम आचार्यके पास ही करे, आज्ञा अहणा करना, उपदश सुनना, तीन प्रकारके आहारका त्याग करना, ( जल छोडकर) प्रायश्चित्त ग्रहण करना, प्रश्न करना, इत्यादिक कायों में प्रथमाचा ही उसके लिये प्रमाण है. यदि प्रथमाचार्य उपदशा देना, बगरह पानाम अशक्त हो तो उनके आज्ञानुसार दुमर आनायके पास क्षपक प्रतिक्रमणादिक कर्तव्य कर सकता है. - - तेल्लकसायादीहिं य बहुसो गंडूसया दु घेत्तव्वा ।। जिम्भाक्रष्णाण बलं होहिदि तुंडं च से विसदं ॥ ६८८ [] तेन सैलादिना कार्या गंडपाः संत्यनेकशः ।। जिल्हाचदनकदिनर्मल्यं जायते ततः ॥ ७१५ ॥ भवन्ति येषां गुणिनः सहाया वित्रं विना ते ददते समाधि ।। समाधिदानाचतमानसैस्ते याद्या प्रयत्नेन ततो गणेन्द्राः ।। ७१६ ।। इति निर्यापकाः। विजयोत्या-तेलकसायादीहिंय तेलेन कषायादिभिश्च। यहुसोचाशो। गंड्सना गंडूषा घेत्तया ग्राह्याः। तत्र गुणं चदति-जिम्भाकण्णाण बलं जिवायाः कर्णयोश शक्तिलं घबने श्रपणे च । होदिदिभविष्यति । तुंच से विसद होविचि पदसंबंधः। स्वैश अपि क्षपकस्य भविष्यति। निर्यापकव्यावर्णना समाप्ता। वाचवणपाटबमुखवैशधार्थ यथादोषं तैलादिगंदृपधारणं गुरुनियोगेन क्षपकस्य विधेयतयोपदिशति मूलारा---गहसया गंडपाः। घेत्तव्षा प्रायाः क्षपकेण । बलं । वचने श्रवणे च शक्तिः । तुई मुख । निर्यापकः सूत्रतः २५ अंकतः ॥ ४ ॥ अर्थ-तेल और कपासले द्रव्योंके क्षपकको बहुतवार कुरले करने चाहिये, कुरले करनेसे जीभ और कानों में सामर्थ्य प्राप्त होता है. अर्थात् कषायद्रव्यके कुरले करनेसे जीभके उपरका मल निकल जानसे यह स्वच्छ होती है. बोलने में समर्थता प्राप्त होती है, कर्णम तेल डालनेसे श्रवणशक्ति चकती है. निर्यापकवर्णन समाप्त हुआ. ८७४ +2PD
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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