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SETTERONETICS
मूनाराधना
आधाहा
समाधिमरणोपरममाकांनुपसर्पदो दोषमाइमूलारा--स्पष्टम।
अर्थ--जो यति तीन भक्तिरागसे सल्लेखनाके स्थानकी बंदना करनेको जाते हैं. उनको मरणोत्तर देवगतिका सौख्य मिलता है अनंतर उनको मोक्षकी प्राप्ति होती है, जो यति एकभव में समाधिमरणसे मरण करता है वह अनेक भन धारण कर समारमें भ्रमण नहीं करेगा. उसको सात आठ भव धारण करनेके अनंतर अवश्य मोक्षकी प्राप्ति होगी.
अर्थ--समाधिमरणका साधन कोई मुनि कर रहा है ऐसा मालूम होनेपर अन्य अन्य संघके मुनि वडे आदर भावसे उसके दर्शन के लिये जाव. यदि कोई नहीं जायगा तो उसकी उत्तमार्थमरणमें भक्ति नहीं है ऐसा सझना शाहिक
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उत्तमार्थमरणमत्यभाव दोरमाचष्टे -
जत्थ पुण उत्तमचमरणम्मि भत्ती ण विजदे तस्स ॥ किह उत्तमट्टमरणं संपज्जदि मरणकालम्मि ॥ ६८४ ॥
उत्तमार्थमा यस्य भक्तिर्नास्ति ठारीरिणः ।।
उसमालिस्तस्य मूनी संपद्यत कुतः ।। ७१०।। विजयोदया- जस्स धुश च पुनः उशमार्थमरण भनिन नियत तस्य मरणकाल कथमुत्तमार्थप्ररणं सायन इति दोपः सूचितः॥
उत्तमार्थमरणे भक्त्यभाचे पोषमाइ--- मूलारा - स्पष्टम् । उत्तमार्थ मरणमें भक्ति न होनेसे क्या दोष होता है इनका वर्णन--
अर्थ-जिसकी उत्समार्थमरण में-समाधिमाण में भक्ति नहीं है उसको मरणकालमें उत्तमार्थमरणकी प्राप्ति कैसी होगी अर्थात् वह आादिक अशुमध्यानसे मरणको प्राप्त होगा. ऐसा अभिप्राय इस गाथासे सूचित होता है,
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