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आश्वास
तषियरीदो यदि नियाको भिक्षा भ्रमति निद्रातिशयशरीरमनिरासार्थ याति, खवगो चसो भवति क्षपका मूलाराधना
स्यको भवति ॥ ८६६ ।
कथं आत्मा त्यक्तः कथं वा अपक इत्यत्राह--
मूलारा-पडिजमाणाए कार्थकरणे । भिक्खयणादि मिक्षामहर्ष कायमलत्यागं घ । अकुणमाणेण अकुर्वता PL निर्यापण । चत्तो अशनामहणानिद्रानिवारणाद्विपमूत्राद्यनुत्सर्जनाच्च महती पीडा प्रापितः । तबिवरीदे भिक्षाभ्रमणनिद्राकरणकाय शुद्धवर्धगगने । चत्तो त्यक्तः आपकस्तत्समाधानानुसंधानापलापात् ।।
एक नियांपक से आत्माका और भूपकका भी त्याग होता है इसका विवचन -
अर्थ क्षपर्क कार्य हि यदि नियापक तत्पर रहेगा वो आहारग्रहण करना, शयन करना, और शरीसमलका त्याग करना इन कार्योका त्याग करनेसे नियापकको आत्मत्यान करना पड़ेगा, अर्थात आहारका प्रहम् न करनेस, निद्राका अभाव होनेसे, और शरीरमलका विसर्जन करनेसे निर्यायकको बढी वेदना होगी जिससे उसका देह पडेगा. यदि निर्यापक भिक्षा ग्रहणादि कार्य में ही लग जायेगा अर्थात वह भिक्षाके लिये यदि भ्रमण करेगा, खुच सोचंगा, और शौचके लिए. जावंगा तो क्षपकका त्याग होगा.
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खवयरस अप्पणो वा चाप चत्तोह होइ जइधम्मो ।। णाणरस य वुन्हे दो पबयणचाओ को होदि ।। ६७६ ।। स्वस्यापरस्य वा त्यागे यातिधो निराकृतः ॥
ततःप्रवचनत्यागो ज्ञानबिच्छेदको मतः ७०१ ।। विजयोदय-रूवगरस अप्पणो या चपक्षपकस्यात्मनो चा त्यागे । चत्तो घु होदि जइधम्मोत्यको भवति यतिधर्मः । यतेधमों यावृपयकरणं स परित्यको सपति क्षपकमपहाय गमने 1 अगमने तु आवश्यकानि यतिधर्मेषु प्रधानानि वक्ताभिवंति शक्तिकरुयात् । नणरस य दो शानस्यापि व्युच्छेदो भपति, निर्यापकेन सह मृतिमुपयाति । तदो तस्मात्पचयणच.गो होदि प्रवचनत्यागो मयति । प्रवचनहाय्देनायम उच्यते । प्राशा हि केचिदेव भवती ति चेदेकका निर्यापका अनशनातिनातिखिन्ना मृसिमुपेयुः कः शाखाण्युपदिशेत् कश्च धारयेवेति भवचनत्यागः ॥
स्वपरत्यागे प्रवचनत्यागमाह--
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