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________________ मृहाराधना ८.८ विजयोदयात्तारि जणा चत्वारो यतयः । भसे अशनं । पाउमा प्रायोग्यं उगमादिदोषानुपहतं वप्पति आत्यंति। अगिला ग्लानिमंतरेण । कियन्तं कालमानयाम इति संशं बिना । उदियं क्षपकेण इ अशनं गानं वा । अमिशांति कर पाक्षममित्येतावता सेनेष्टं न तु लील्यात् । अथगददोसं वातपित्तमामजनकं । क आन यंति अमाइणी मायारहिताः अयोग्यमिति से नानयन्ति पिणा मोहान्तमक्षयोपशमाद्विनिमन्त्रिताः। अलब्धि देशी गोणमिति कल्पयेत् ॥ चत्वारस्तदर्थ समुचितमशनं उपनयन्तीत्यनुशास्ति मूलारा - उबकम्पैति आनयंति । आगलाए ग्लानिं बिना कियंतं कालं आनयाम इति संक्लेशं बिना । छेदिय भक्तपानं त्याला दुःखमसमाधिकरं निराकरोतीत्येतावतैव क्षपकेणेष्टं । अवगददोसं वातपित्तश्लेष्मणामजनकं प्रशमकं च उमादिरहितं वा । अमाइणो अयोग्य योग्यमिदमिति प्रतारणरहिताः । लाभांतराय भयोपशमाद्रिभालब्धिसमन्विताः । तयैव क्षपकस्यासं क्लेशनान ॥ अर्थ - चार मुनि ग्लानिका त्यागकर उद्गमादिदोपरहित आहार के पदार्थ क्षपक के लिये लाते हैं. कितने दिनतक हमको लाना पडेगा ऐसा विचार वे मनमें नहीं करते हैं. अपक जी पदार्थ चाहता है उनको वे लाते हैं, क्षपक भी जिनमें भूख और प्यास शांत होगी ऐसे ही पदाथ चाहता है लौल्यसे आहारकी इच्छा वह नहीं करता है. क्षपकके वात, पित्त, और श्लेष्मको न बढानेवाले पदार्थ ही परिचारक मुनि लाते हैं. परिवारक मुनिओंक हृदयमें मायाभाव नहीं रहता है. अतः वे अयोग्य आहारको योग्य बताते नहीं. मोहनीय कर्म और अन्तराय कर्मका क्षयोपशम जिनको प्राप्त हुआ है ऐसे ही परिचारक आहार लाने के कार्य में आचार्यके द्वारा योजे जाते हैं, जिनको भिक्षालब्धि नहीं है ऐसे मुनि इस कार्यमें नियुक्त करनेसे क्षपकको क्लेश होगा. चत्तारि जणा पाणयमुत्रकप्पंति अगिलाए पाओग्गं ॥ छेदियमवगददोसं अमाइणो द्धिसंपण्णा ॥ ६६३ ॥ विजयोदयाचारिणा इति स्पष्टार्थ गाथा--सूरिणा अनुशानी निवेदितात्मानौ द्वौ द्वौ पृथक पृथ क्यानं चानयतः ॥ चत्वारः क्षपकाय पानमानयन्तीत्याह- आश्वास ८५८
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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