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________________ यूआरधना आश्वास ८५५ अपमित्र ही है परत निःसार भी है. इस शरीरके आश्रयसे आत्माको भी अनित्यता प्राप्त हुई. अर्थात इस आत्माको वार चार जन्म मरण धारण करना पड़ा है. वस्त्र, स्त्री, गंध, पुष्पमाला, भोजन बगैरह भोगपदार्थ दुर्लभ है. इनकी प्राप्ति होनेपर आत्मा तृप्त होता नहीं. इनका लाभ नहीं होनसे अथवा लाम होने पर भी यदि ये शीघ्र नष्ट हो गये तो महान् दुःख उत्पन्न होता है. देवजन्मकी प्राप्ति होना व मनुष्यजन्म मिलना दोनों दुर्लभ है. ये बहुत दुःखोंसे भरे है. इनमें अल्प सुख की प्राप्ति होती है. इस प्रकारका वर्णन जिसमें किया जाता है यह कथा निर्बजनी कथा कहाती है. 5699RTENSAHESEARSARAMATPATAMANSAR विक्खवणी अणुरदस्स आउगं जदि हवेज पक्खीणं ॥ होज्ज असमाधिभरण अप्पागमियस्स खवगस्स ।। ५५८ ।। विक्षेपणीरतस्यास्य जीवितं यदि गति ।। लपानीमसमाधानफला सा तस्य जापते ॥ ६८४॥ विजयोदया-विक्षपण्या परसमयानरूपणा अनुरक्तस्थ भाउग भायुकं । जवि षेज्ज यविभवेत् । पक्खीणं प्रक्षीण होगजमवेत्भसमाधिमरणं ! मप्पागमिगस्स अगस्स अल्पभुतस्य सपकस्य यदेव पूर्वपक्षीकृतं दृषणाभिधानाय तेवय सस्पमिस्यव्यवसायावसमीचीनसामर्शनस्प रलमपैकाम्यं नास्तीति मम्यते । विक्षेपण्यामासक्तस्यायुप्रक्षयेऽल्पभुतस्यासमाश्मिरणमाह-- मूछारा--अप्पागमियरस अल्पश्रुतस्य ।।। अर्थ-विक्षेपणी कथामें जो की स्वमतका प्रतिपादन कर परमतका खंडन करती है. यदि क्षपक अनु. रक्त हुआ है और ऐसी अवस्थामें यदि उसका आयुष्प विलीन होगा तो उसको असमाधि मरण होगा. आपक अल्पश्रुत धारक हो तो पूर्वपक्षमें जो परमतका स्वरूप उदरपक्षसे दूषित करने के लिये कहा है वहीं वस्तुका सत्यस्वरूप है ऐसी श्रद्धान करेगा जिससे उसको रत्नत्रयागधना न होगी.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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