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________________ मूलारावना 'મૈં अर्थ- आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेजनी और निवेजनी ऐसे कथा के चार भेद हैं, इन कथाओंमें आक्षेपण, संवेजनी और निर्वेजनी कथायें क्षपकको सुनाना योग्य हैं. विक्षेपणी कथाका निरूपण करना हितकर न होगा. तासां कथानां स्वरूपनिदेशायोत्तरं गाथाद्वयं- भाक्वणी कहा सा विज्जाचरणमुवदिरसदे जत्थ ॥ समयपर समयमा कथा दु विक्खेवणी णाम ।। ६५६ ॥ कथा साक्षेपणी ते या विद्याचरणादिकम् ॥ विक्षेपणी कथा बक्ति परात्मसमयौ पुनः ॥ ६८२ ।। विजयोड्या - आपखेचणी कहा सा सा आक्षेपणी कथा भण्यते । जत्थ यस्यां कथायां । विज्जाचरणमुषविस्सदे शानं चारित्रं चोपदिश्यते । पर्वभूतानि मत्यादीनि ज्ञानानि सामार्थिकादीनि या चारित्राण्येयंस्वरूपाणि इति । ससमयप रमाकादु विक्खेवणी णाम । या कथा स्वसमयं परसमये वाश्रित्य प्रवृत्ता सा विक्षेपणी भण्यते । सर्वथा नित्यं सर्वथा क्षणिके एकमेवानेक्रमेष वा सदेव, विज्ञानमात्रं वा शून्यमेवेत्यादिक परमयं पूर्वपक्षीकृत्य प्रत्यक्षानु मानेन आगमेन च विरोधं प्रददर्श कथंचित्रित्यं कथंचिदनित्यं कथंचिये, कथंचिदनेकं इत्यादिस्वसमयनिरूपणाच विक्षपणी || किलक्षणास्ताः कथा इत्यत्र गाथाद्वयमाद मूलारा - विज्जामित्यादि ज्ञानं । चरण सामायिकादिचारित्रं । ससमय रसमयगा सर्वथा नित्यमेत्र सर्वथा क्षणिकमेवेत्यादिपरमतं पूर्वपक्षीकृत्य प्रत्यक्षादिना च प्रतिक्षिप्य कथंचित्रित्यं कथंचित्क्षणिकं इत्यादि स्वमतं प्रतीत्यवष्टमेन व्यवस्थापयतीत्यर्थः । इन कथाओंका स्वरूप आचार्य दो गाथाओंसे कहते हैं - अर्थ - जिसमें सम्यग्ज्ञान और चारित्रका निरूपण किया जाता है उस कथाको आक्षेपण कहते हैं. अर्थात् मति त अवधि वगैरह पांच प्रकारके सम्यग्ज्ञानका स्वरूप, और सामायिक छेदोपस्थापना वगैरह पांच प्रकारके चारित्रका स्वरूप जिसमें कहा गया है उसको आक्षेपणी कथा कहते हैं. जिस कथामें जैनमतके सिद्धांतों का और परमतका निरूपण है उसको विक्षेपणी कथा कहते हैं. इसका विशेष विवेचन – वस्तु सर्वथा नित्य ही है, भवावः ५ ८५३
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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