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________________ te मूलाराधना ८५१ मुळा- पापा । अन्यथा शब्दाचारापिप गायकवारहिन। जाcिt ।।दाप्रत्यभराक्षमाणाविरदं। अच नात्युध्यनि । अविरचितं । पुणरचं उक्तस्वार्थमा आशंपेग योनिमा... हितम् । मुनि धर्मोपदेश किस प्रकार कहते है-- अर्थ-- मुनि जब धर्मोपदेश देते हैं तब उनके मुखसे जिस अभिप्राय के शब्द निकलने चाहिये ये ही निकलते हैं. विपरीत अर्थका कभी भी वर्णन नहीं करते हैं. एकही शब्द वे दो तीन दफे नहीं बोलते हैं. संशय उत्पन्न करने वाला भाषण वर्ण्य करके प्रत्यक्षपरोक्षादि प्रमाणसे आविरुद्ध वचन मुखसे निकालते हैं. उच्चस्वर और मंदस्वर का त्याग कर मध्यमस्वरसे वे भाषण करते हैं. अतिशय सावकाश और अतिशीघ्रताको छोटकर मध्यम पद्धतिका अवलंबकर बोलते हैं, उनका भाषण, कर्णमनोहर, मिथ्यात्वस आमिश्रित, निरर्थकतारहित रहता है. जो अर्थ एक दफे कहा है, उसको ही पुनः कहना पुनरुक्तदोष कहा जाता है इस दोषस रहित उन मुनिगणका भाषण रहता है. STARTrolla - - णिद्धं मधुरं हिदयंगमं च पल्हादणिज्ज पत्थं च ॥ चत्तारि जणा धम्म कहति णिच्च विचित्तकहा ।। ६५३ ॥ प्रल्हादजनकं पथ्यं मधुरं हृदयंगमं ॥ धर्म वदन्ति चत्वारो हृद्यचित्रकथोयताः ॥ १७ ॥ विजयोदया-णि प्रियं । मधुर दलिन पदारगर । रामशंग बांधायागशि । पदादाज व सुखद १ च कर ति काचति । पिच्चं यनुपरस । विचित्तकहा मानाचा शटाः । मूलारा-णि प्रियं मधुरं ललितवापरयनं विचिचकया नानाफामालः । अर्थ-पिंय, मुंदरशब्दरचनायुक्त, कान और हदय रसव कर घाला सुनकर, हितप्रद ऐसा मापदेश अनेक कथाक साथ चे चार पास्चारक मुचि कहते है. CBTET
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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