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________________ लारापना माथासः ६७ हिंदी अर्थ-चारिखकी आराधना करनेवाले अनादि मिथ्यादृष्टी जीव भी अल्पकालमें संपूर्ण कर्मोंका नाश करके मुक्त हो गये ऐसा देखा गया है. अत:जीवोंफो झारापनाका अपूर्व फल मिलता है, ऐसा समझना चाहिये. मावार्थ-अनादिकालसे मिथ्यारयका तीव्र उदय होनेसे अनादिकाल पर्यंत जिन्होंने नित्य निगोदपर्यायका अनुमव लिया था ऐसे नउ तेवीस जीव निगोवपर्याय छोडकर भरत चक्रवर्तीके भद्रविवर्धनादि नाम धारक पुत्र उत्पन्न हुए थे. उनको आदिभगवान के समवसरणमें द्वादशांग वाणीका सार सुननेसे वैराग्य होगया. ये राजपुत्र इसही भत्रमें सपर्यायको प्राप्त हुये थे. इन्होने जिनदीक्षा लेकर रत्नत्रयाराधनासे अस्पकालमें ही मोक्ष लाभ किया. अर्थात मरणसमयमें इन्होने रत्नत्रयकी विराधना नहीं की इसलिये उनको आराधनाका उत्कृष्ट फल-मोक्ष प्राप्त हुघा. ऐसे अनादि मिष्यापिओंका मीने ना होना है। अनंत ज्ञानादिगुणरूप सिद्धत्व प्राप्त होता है. गाथामें ' चारित्तस्स य आराहया' यह शब्द है. चारित्रका अर्थ यहां रत्नत्रय ऐसा समझना चाहिये, अतः 'चास्त्रिाराधनाकी स्तुति करते हैं । ऐसा कोई च्याख्यान करते है उनका खंडन हो गया. क्योंकि यहां चारिबाराधनाका महत्व बतानेका प्रसंग नहीं है. आयुके अंतमें रत्नत्रय परिणामकी विराधना नहीं करना चाहिये यह अभिप्राय इस गाथामें कहा है. अतः 'पारिवाराधना की स्तुति करते हैं' ऐसा व्याख्यान करना योग्य नहीं है। TOTATIMATE 'सध्यरस पवयणम्स य सारो आराहणा तला' इति यदुकय ते, यस्मिन्नेव काले मरण तस्मिन्नेव काले रत्नभयपरिणतेन भाव्यं हितार्थिना अन्य दा किमिति सारित्रे तपसि च प्रयासः क्रियते इति शिष्यकामुपन्यस्यति सूत्रकार: जदि पवयणस्स सारो मरणे आराहणा हवदि दिठा । किं दाई सेसकाले जदि जददि तवे चरित्ते य ॥ १८ ॥ मृतावाराधनासारो यदि प्रवचने मतः ।। किमिदानी सदा यत्नश्चतरंगे विधीयते ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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