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मूलाराधना
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संपूर्ण अंग अपने हाथसे खुब दापना जिससे धपककी देहवाधा मिटेगी. क्षपकको हाथका आश्रय देकर इधर उधर पलले सार कारागारमा इसको कक्रमण कहते है. उसको संस्तरपर सुलाना, हाथ देकर बैठाना, खडा करना, उसको एकबगलसे दुसरे अगलयर सुलाना, हाथ पांव पसारना, संकुचित करना इत्यादिक उपकार परिचारक मुनि करते हैं.
संजदकमण खक्यस्स देहकिरियासु णिच्चमाउचा ।। चदुरो समाधिकामा ओलग्गता पडिचरंति ।। ५५०॥ देहकर्मसु चेष्टते क्षपकस्य समाधिदाः ॥
चत्वारो यतयो भक्त्या परिचर्यापरायणाः ॥ ६७६ ।। विजयोव्या-संजदकमेण प्रयत्नेनैव । खवगस्स क्षपकस्य । देहकिरियासु शरीरक्रियामु व्यावणितासु । णि प्रतिदिनं। आजुत्ता मायुक्ताःचदुरो चरथारो यतयः । समाधिकामाः क्षेपकस्य समाधिकरणम मिलरन्तः। मोलमंता 'उपासनां कुर्धन्त।। पशिचरति प्रतिचारका भवन्ति । 'घसारि जणा धम्म कहति विकथायो पग्जिसा 'इति पदसंबंध नवारो धर्म कथयन्ति विकथाः परित्यज्य ||
मूलारा--संजदकमेण मुनिमार्गेण । जाटत्ता मनोवाक्कायैः समाहिताः । समाधिकामा क्षपकस्य समाधिमिकछन्तः । ओलागता पर्युष्टिं कुर्वन्ति । परिचरति प्रतिचारका भवन्ति ।।
अर्थ-बहमन उपकार करते समय परिचारक सावधानी रखते हैं. अर्थात असंयमकी उत्पत्ति न होगी और क्षपकको समाधान होगा एसा प्रयत्न करते हैं. उपर्युक्त कार्य करनेकेलिये हमेशा चार परिचारक मुनिओंकी निर्यापकाचार्य योजना करते है.
कास्ता विकथा भवन्ति । " ... .. ... भत्तित्थिराजजणवदकंदप्पस्थणडणट्टियकहाओ ॥ - बज्जिसा विकहाओ अज्झप्पविराधणकरीओ॥ ६५१ ।।
स्त्रीराजमन्मथाहारद्रव्यदेशादिगोचराः॥ विमुच्य चिकथाः सर्वाः समाधानानिवनीः ।। ६७७ ।।
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