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________________ इलाका 682 विजयोदया करपाक कुतला योग्यमिदमयोग्यमिति भक्तपानपरीक्षायां कुशलाः । समाधिकज्जन्दा समाधानकरणोद्यताः सुदरेहस्सा श्रुतप्रायश्चित्तंथाः । गौवत्था गृहीताः । भगवंते भगवंतः स्वप कारणमाहवन्तः । अउदाळीस तु अष्टचत्वारिंशत्संख्या विजयगा निर्माणका यतयः ॥ भूलारा करपाकप्पे योग्यायोग्य भक्तपानादिपरीक्षायां । भयवंता स्वपरोद्वरणमात्यः । अर्थ- ये आहारपानादिक पदार्थ योग्य हैं इनका ज्ञान परिचारकों को होना आवश्यक है यदि वे इस ज्ञानसे वंचित हो तो पकको असंयमें भी प्रवृत्त करने लग जायेंगे, आयोग्य आहार में भी प्रवृत्त करेंगे. क्षपकका चिन समाधान करनेवाले, प्रायश्चित्त ग्रथको जाननेवाले. आगमन, स्वयं और परका उद्धार करनेमें कुशल अर्थात् स्वपरोपकार करके उद्धार करते हैं ऐसी जिनकी जग में कीर्ति फैली है. ऐसे परिचारक यति अडतालीम होते हैं निर्यापका ममुपकारं कुर्वन्तीति कथनायोत्तरमबंध: - आमासणपरिमाणचकमणारायण जिसीदणे ठाणे ॥ उव्वत्तणपरियचणवसारणा उंटणादीसु ॥ ६४९ ॥ आमर्शनपरामर्शगमस्थानशयादिषु ॥ उपराचसकुंचनादिषु ।। ६७५ ।। विजयोदया- आगासन परिमाण चैकमण सयणणितीयणे ठाणे क्षपकस्य शरीरैकदेशस्य स्पर्शने आम दीनं, समस्तधीरस्य हस्तेन स्पर्शनं परिमदर्शनं । संक्रमणमितस्ततो नमनं । णिसी ठाणे निषद्यास्थानमित्येतेषु । उचलणपरियणसाने पाचरणे । हस्तपादादिप्रसारण आकुंचनमित्यादिषु ॥ निर्माषकाः क्षपकस्येमनिगशुपकारं कुर्वतीत्युत्तर प्रबंधन कथयिष्यनादौ तेषां देहपरिचर्यायां धतुरो नियोक्तुं गाथान्यमाह - मूलारा-आमासण शरीरैकदेशस्पर्शनं । परिमाण सर्व गावस्पर्शनं । चेकमण इतस्ततो परिचरणं ॥ अपके ऊपर उनके द्वारा किये जानेवाले उपकारका आचार्य वर्णन करते हैं. अर्थ - air एक देशका स्पर्शन करना उसको आमर्शन कहते हैं. अर्थात हाथ या पांव वगैरे अवबाधा दूर करनेके लिये हाथसे दावना, पगचंपी करना, संपूर्ण अंगके स्पर्शनको परिमर्शन कहते हैं. अर्थात् - भा
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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