SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 865
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [1 48% चतुर्विधस्यापि संस्तरस्य गुणव्यावगमुखेन आरोहत्यमाह ती योग्य नायिकाला विधि शाकमः ॥ अर्थ-चारों प्रकारके में होने चाहिये. योग्य प्रजापत, बहुत छोटा अथवा बहुत बडा जो नहीं हैं. सूर्योदयकाल में और सूयांसकालमें शोध करने जो शुद्ध होता है. शात्रोक्त जिसकी रचना हुई है, ऐस संस्तरपर मन, वचन और कायको शुद्धकर क्षपकको आरोहण करना चाहिये. णिसिदित्ता अप्पाणं सव्वगुणसमणिदंमि णिज्जवए || संथारम्मि सिणो विहरदि सल्लेहणाविधिणा ॥ ६४६ ॥ निर्यापके समर्प्य स्वं समस्त गुणशालिनि ॥ प्रवर्तन विधानेन क्षपकः संस्तरे स्थितः ॥ २७९ ॥ तृणक्षोणिपाषाणकाष्ट रास्ते स्थितः संस्तरं धर्ममार्गप्रवीणः ॥ धुनी समस्तानि कर्माणि योगी रणे यत्रवर्गों बलानीव धीरः ॥ ६७२॥ इति संस्तरः ॥ बिजयोदया - णिसिनित्ता स्थापयित्वा त्यक्त्या अध्याणं आत्मानं सव्वगुणसमणिदस्मि सर्वगुणसमन्विते निजघ निर्वाणके संधारम्मि संस्तरे । सिणो निषण्णो । विहरदि चेष्टते। सलेदणा विदिणा संलेखना द्विप्रकारा वालाभ्यंतराचेति । द्रव्यसल्लेखना भावसल्लेखना च । श्राहारं परिहाय शरीरसलेखनां करोति । सम्यग्दर्शनादिभावनया मित्यादिपरिणामास्तनूकरोति । एवं वसतिस्वारी निरूपितौ ॥ कि हत्यारा किं करोतीत्याह- लारा निसिदित्ता समय, संवदिया आहारपरिहापनेन शरीरं सम्यक्त्वादिभावनया मिध्यात्या तनूकरोतीत्यर्थः । संस्तः सूचः २३ अर्कैः ७ ॥ अर्थ- क्षपक संपूर्ण गुणों से पूर्ण ऐसे निर्यापकाचार्य पर अपना सर्व भार सोपकर अर्थात् उसको की शरण मानकर संस्वरपर आरोहण करता है और नाका विधिपूर्वक आवरण करने की शुरुआत करता है. सोखना के दो प्रकार हैं. बाह्य सल्लेखना और अभ्यंतर सल्लेखना अथवा द्रव्यसल्लेखना और भावस भावा ५ ८४५
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy