________________
आश्वास
मूलाराधना
शिलासंस्तरमाह
मूलारा-विद्धत्यो विध्वस्तो दाइकुट्टनघर्षणादिभिः प्रासुकीभूतः । अप्फुडिदो अस्फुटितः । णिर्फपो निश्चलः । पाषाणमत्कुणादिरहितः । समपट्टो समतलः | उज्जोए सप्रकाशप्रदेश बर्तमानः ।
शिलासंस्तरका विवेचन--
अर्थ - शिलामय संस्तर विध्वस्त अर्थात् अग्निज्वालासे दग्ध, टाकीके द्वारा उकीरा गया अथवा घिसा हुआ होना चाहिये. क्योंकि अग्न्यादिके द्वारा वह प्रामुक हो जाता है. यह शिलामय संस्तर टूटा फूटा न हो, निश्चल हो, सर्वतः जीवोंसे रहित, मत्कुणादि जीवोंसे रहित, समतल, और प्रकाशयुक्त होना चाहिगे.
भूमिसमरुंदलहुओ अकुडिल एगंगि अप्पपाणो य ॥ अच्छिद्दो य अफुडिदो लण्हो बि य फलयसंथारो | ६४३ ॥ लघुभूमिसमो रुंद्रो निःशब्दः स्वममाणकः ।।
एकांगः संस्तरोऽछिद्रः श्लक्ष्णाः काष्ठमयों मतः।। ६६८॥ विजयोदया--भूमिसमम्बलगो भूम्यक्लमः, महान् , लघुः, । अडिल पगंगि अप्पपाणो य अचलः, एकशरीरः, निर्जन्तुकः। अछिदो य अच्छिद्रः। अफुद्धिदो मस्फुटितः । लण्दो मसृणः । फलंगसंथारो फलकसंस्तरः॥
फलफसंस्तरं ध्याचष्टे
मूलारा-भूमिसम समततो भूमिलग्नः । रुंद विस्तीर्णः । लहुओ उवर्तुं नेतुमानेतुं वा सुशकः । अकुक्कुचोकंग अकुकुचो निःशब्द एकांग एकफळकः । अप्पमाणो पुरुषप्रमाणः । लण्हो मसृणः ।।
फलकमय संस्तरका वर्णन
अर्थ---चारों तरफसे जो भूमिसे संलम हुआ है, रुंद, और हलका, उठानेमें रखने में अनायासकारक, सरल, अखंड. निर्जन्तुक, स्निग्ध, मृदु, अफूट ऐसा फलक संस्तर के लिये योग्य है.
८१