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माराधना
आश्वास
लेपनमार्जनकियारहिसायां । यदि वति पर पारण : प्रोपगंतुकाध अर्जितायां । णिप्पाहुडिगाए संस्काररहित नायां । सजाए सती॥
न च यस्यां मननोभकरः पंचेंद्रिगप्रचारो नास्ति तस्यां सर्वस्यामेव स्थेयं किं तर्हि तथाभूतायाम युद्धमादिदोपरहितत्वादविशिष्टायामेवेत्यनुशास्ति
मूलारा- अकिरियाण आत्मानमुद्दिश्य सम्मार्जनलेपनादिक्रियारहितावां । असंसत्ताप तत्रस्थैरागंतुकैच सत्त्वैर्वर्जितायां वा । णिपाहुडिगाए सापटवरहितायां । निःसंस्कारायामित्यन्ये ।
जिसमें मन क्षुब्ध होता नहीं है, जिसमें रहनेसे पंचेंद्रिय अपने विषयके प्रति दौड लगाते नहीं हैं ऐसा सर्व ही स्थान मुनिओंके लिये योग्य है क्या ? इस प्रश्नका उत्तर
अर्थ:-जो वसतिका उद्गम, उत्पादन और एपणा दोषोंसे रहित है. जो वसतिका मुनि के उद्देश्यसे लिपी पोनी गई नहीं है ऐसी वसतिका क्षपक रहत है. जिसमें जंतुओंका वाम नहीं है अथवा बाहरसे आकर जहां प्राणि वास नहीं करते हैं, जो संस्कारहिन है एसी वसनिकाम मुनि रहते हैं.
Panam
निदापा का वसतीशभवितव्या इत्या वसति व्यायर्णयति
दो तिणि विसालाओ घेत्तबावो विलालाओ। सुहाणिक्खवणपवेसणघणाओ अवियडअणंधयाराओ ।। ६३७॥ .
मिथ्यारष्टिजनागम्या गृहिशय्याविवर्जिताः ॥
वित्रा वसतयो ग्रायाः सेव्या विश्वस्ततामसा: ।। ६६१॥ घिजयोदया-सुक्षणिक्खयणपवेसणघ्रणाश्रो अफ्रेिशमबेश निर्गमना अपि । अधियडमणधयाराओ अविवृतद्धारा अनंदकागच जघन्यतोनाले ग्राहो । राका क्षपको यसति, अपस्यो अन्य यतयो वाहा जनाइय धर्मश्रवणार्थमा यानाः। विशनद्वारजया झीनवानामिरेशावनस्थितनोद दुख स्याल । शरीरमलस्वागोऽपि कथमप्रमाने कियन अंधकारमाहुले असंयमः स्यात् । सम्पनियामप्रवेशायां आत्मबिराधना असंयमविराधनाचा
पुनर्वत्तति तश्यितां च व्यावयति-- मूलारा --- सुष्णिक्खवणपसणधणाओ सुम्बनिर्गमाः सुखप्रवेशा निविडाश्च । दुःखनिर्गमप्रवेशायामात्मनो बाल.