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________________ आश्वासः महाराधना 130 कीरशी वसतियाग्या का या नेत्येतद्वयान उत्तरे. पण ग्रंथेन तथा योग्य निरूपयति गंधवणट्टजट्टरसचक्कजंतम्गिकम्मफरसे य ॥ गबिगाहा पाउहिलवण्डरायभग्गे य ॥ ६३३ ॥ गाथका वादका नर्तकाश्चाक्रिकाः शालिका मालिकाः कालिका वांशिकाः ॥ काठिका लौहिका मास्सिकाः पानिकाः कांडिका दांरिकारचार्मिकाकिंठपकाः विजयोदया--गंधयणटजट्टस्मचकतग्गिफम्मफरुस ५ नापकाना, नर्तकाना, पानामामा - शा. लायां । तिलमदनकुमकारशालायां च, रजकपाटहिकडीदनटगृहाणां समीप । राजमार्गस्य यासमीपभूताया बसती ॥ अथवं स्वभ्यस्तसमाधिसाधनस्याप्याराधकस्यायोग्यघसती निवसतः समाधिव्याघाती भवतीति योग्यवसति तनिवासाय निरूपयिष्यन् गाथासप्रकेन द्वितयीमपि वसतिं सूत्रयति-तत्रादौ वावगाथाद्वयमयोग्यशच्या लक्षवितुमाह मूलारा---गंधय गंधर्व गीतं । णट्ट नृत्यं । जट्ट इस्ती । अस्स अश्वः । चर्म चक्र कुंभकारोपकरणं । जंत यंत्रं तिलनुपीलनोपायः । फरूसे शांखिकमणिकारादिकः । जत्तिक । कोलिकः । रंजय रजकः । पाडहिय पाटहिक: तीरिकः । होन: वपचः । पाड नटः वंशागारोहणतकः । रायमग्गे महावल, राजमार्गा वा ॥ कोनसी वसतिका योग्य है और कोनसी नहीं है इसका विवेचन ग्रंथकार करते हैं. प्रथमतः अयोग्य वसतीका वर्णन करते हैं-- अर्थ-- गंधर्वशाला-गायनशाला,मृत्यशाला, गजशाला, अश्वशाला, तलीका घर, कुम्हारका घर,वोबीका घर, बाजे बजानेवालेका घर, डोंबका घर, बांसके ऊपर चढकर नृत्य करेनचालेका घर इनके समीप जो वसतिका होगी यह मुनिक लिये योग्य नहीं है, जो वसतिका राजमार्गके समपि है वह भी मुनियासके लिये योग्य नहीं है. ८३८ चारणकोट्टगकल्लालकरकचे पुरफदयसमीऐ य ॥ एवंविधवसधीए होज्ज समाधीए बाघादो ॥ ६३४ ॥ चारणा वारणा बाजिनो मेषका, मद्यपाः पंटकाः सार्थिकाः सबकाः॥ ग्राविकाः कोपालाः कुलाला भटाः पण्यनारजना द्यूतकाय विदाः ॥ ६५७।।
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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