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मुलासश्ना
आवास
अर्थ---जिसका आचार निदोष है ऐसा वह क्षेपक प्रायश्चित लेकर शासकथित विधीके अनुसार गुरुसमीप रहकर आपनेको निर्मल चारित्रयक बनाना हुआ रत्नत्रयमें प्रवृत्ति करता है तथा समाधिमरणके लिए जिम विशिष्ट आचरणका म्बीकार किया है उसमें उसकी हन्छा करता है.
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एवं वासारते का विविध तबोकम्म। संथारं पडिवजदि हेमंते सुहविहारंम्मि || ६३१ ।। वर्षासु विविध स्पृष्टा तपःकर्म विधानतः ॥
सुरववृत्ती स हेमन्त संस्तरं प्रतिपणतं ।। ६५४ ।। विजयोदया-पयं वासारत्ते वर्णकाले। फासदृण स्पृष्ट्वा । विषिधं नानाप्रकारं । तवोकम्म तपाकरें। संथारं, गंगनां पढियदि प्रतिपद्यते । देति शीतकाल मुदाबहारमिस मुखबिहारे अनशन समुतम्य मदानपरिश्रम न । भवतिन काल इति सुस्वविहारीमन्युच्यते ।
- वासारते वकार । कासे दूग अनुदाय । सुइविहारम्मि मुखो गान्परिश्रमाप्रादुर्भावालिट्रो गिगगगनाननं यत्र।
अर्थ--इस प्रकारसे बांकालम नाना प्रकारके तप कर वह क्षपक जिस में अनशनादि करने पर भी महान् कष्टका अनुभव नहीं आता है एसे हेमंतकाल में संस्तरका आश्रय करता है.
सब्बपरियाझ्यस्सय पडिक्कमित्तु गुरुणो णिओगेण ॥ सव्वं समारुहित्ता गुणसंभारं पविहरिजा ॥ ६३२ ॥ निस्पर्शवन्निश्चतुरंगदाप गुरूपदेशेन विशुद्धचेताः ॥ प्रवर्तते शुद्धगुणाधिरूढः संसारकांतारविलयनाय ।। ६५५ ॥
इति गुणदोषी। विजयोदया- सव्यपरियारयगस्तय सांस्य शानदर्शनचारित्रपर्यायस्य अतिचारान् । पडिकमिनु प्रतिनिवृत्तो