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माराधना
आघाम:
उपाध्याये वाऽसति । होदि भवति । णिज्जवभो निर्यापकः । पवनी प्रवतकः । वेरो स्थविरश्चिरप्रजितो मार्गशो। गणधरवसहो य बालाचार्यो वा । जनणाप यत्नेन वर्तमानः ।यमालोचनार्या मुगदोपनिरूपणा समाता ॥
यथोक्तगुणे गणाधिपेऽध्यापके या निर्धापकेऽसनि अन्योऽपि निर्यापकः म्यादिस्यनुशास्ति
मूलारा --धेरे वृद्धाचार्थे । पबत्ती अल्पश्रुतः सम्लनयनादाचरितज्ञः प्रवर्तकः । थेरो चिरप्रतिनी मागतः गार । गगनबन हो गया नायः नियोपको भयनीति संवैधः । जागा प्रसारित वनेन प्रवरीमानः ||
आचायके आधारयत्वादि गुणोंका पूर्व में वर्णन कर चुके हैं. इन गुणों के धारक आचार्य यदि प्राप्त न हो तो अन्य मुनि भी क्षपकक समाधिमरण साधने के लिये निमोपणपटना मारण हो सकता है क्या इस शंकाका उत्तर
. अर्थ—पूर्वोक्तगुणोंके धारक संघपति आचार्य न हो तथा इन गुगोंके धारक उपाध्याय भी याद न हो तो प्रवर्तक मुनि अथवा अनुभवी वृद्ध मुनि वा वालाचार्य यन्नसे बनामें प्रवृत्ति करते हुए पकका समाधिमरण साधने के लिय नियापकाचार्य हो सकते हैं. जो ज्ञानसे अल्प है परंतु सर्व संघकी मयोदा योग्य रहगी एम आच'चरणका ज्ञान जिसको है उसको प्रवर्तक कहते हैं और जिसको दीक्षा लकर बहुत दिन हुए है ऐसे अनुभवी बद्ध मुनिको साधु कहते हैं.
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सो कदसामाचारी सोज्झं कटुं विधिणा गुरु तयासे || विहरदि सुबिसुद्धप्पा अन्भुजदचरणगुणकखी । ६३० ॥
स चारित्रगुणाकांक्षी कृत्वा शद्धि विधानमः ।।
गुरोरंत समाचारी विशुद्ध चते नराम् ॥ ६२३ ।। विजयोदया- सो कदसामाचारी सक्षपकः कृतसमाचारः। मोदी शुद्धि । काद छत्वा। विधिणाविधिना । गुरुसयासे गुरुसमीपे । बिहरदि प्रवर्तते । सुविसुद्धप्पा सुष्टु विशुडान्मा ।धन्भुजदचरणगुणकंखी अभ्युशवचारित्रगुणकांक्षासमन्वितः ॥
कृतगुरुदत्तप्रायश्चित्तस्य क्षपकत्त्य देहत्यागोचितकालाप्राप्तावतराचरणं गाथाश्येयोपदिशति-- मूलारा--कदसामाचारी कृतसामाचारः । सोझ कटुं शुद्धिं कृत्वा ।