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________________ मूलाराधना आश्वास सर्वदोषक्षयाकांक्षी संसारश्रमभीलुकः ।। आलोचयति तं सर्व क्रमतः पुरतो गुरोः ५६३६ ॥ विजयोत्या-अद्धाण रोहगे जणषदे यस्यायस्थिते जनपदे यावन्तो मार्गास्तेषां रोधके परचफे जाते यदि निस्सतुं न लभते संक्लिष्टा भिक्षा र्या तत्र अयोग्यस्य सेवा कृता भात्मना तमपि कथयति | रादो दिवा रात्रौ अयमप्तिः चारो जातो दिबसे इति घा कथनं । मार्या उपद्रुते संघ विघया मंत्रेण वा तनिषेधनायाभयमतिचारो जात इति बा। दुर्मिक्षे या महति अवमोदर्यमग्नेन यदात्मना सेवितं मन्ये याऽयोग्यभिक्षाप्रदणे रत्थं प्रवर्तिता इति चा कथनं । दप्पादिसमाषणे दर्यादिभिः समापनः ॥ मूलारा--अद्धाण रोधगे जणवये । जनपये देशे। यावतोऽध्वानो मार्गास्तेषां परचके रोधके परनों प्रवृत्ते निःसर्तुमलभमानस्य साधोर्या पारखश्येन संश्लिष्टा भिक्षाचर्या संजाता अयोग्यसेवा वा आत्मना कृता तामप्युद्धरतीति संबंध पो दिया ने दिवा वगोहोरो नासले मार्यामुपद्रवे संघस्य विद्यामंत्रादिना तत्प्रतिकारे योऽतिचारः । ऊमे दुर्भिक्षे अयोग्यसेवनादिना योऽतिचारोऽन्यो वा तारा । दप्पादिसमावण्ये दादिभिः सांमुख्येन आवरणो प्रातस्तं सर्व उद्भूरति गुरोरने कथयति । किं कुर्वन् ? कर्म अभिट्तो देशक्रम कालक्रम चानतिकामन् ॥ अर्थ-देशमें बाहर जानेके अथवा प्रवेश करनेके जिनने मार्ग हैं वे शत्रुसैन्यके द्वारा रोके जानेपर वहांस निकलना अशक्य हो जाता है, उस समय भिक्षा मिलना कठिन हो जानंसे परिणामों में संक्लेश पैदा होता है. कदाचित ऐसे समयपर अयोग्य पदार्थका सेवन होता है. आलोचनाके समयमें इन सब बातोंका क्षपकको खुलासा करना योग्य है, अमुक अतिचार रात में हुआ था अमुक अतिचार दिन में हुआ था यह भी कथन करना चाहिये. मारी रोगसे संघ पीडित होने पर विद्या और मंत्रके द्वारा उसका निराकारण करते समय जो अतिचार दुआ होगा यह भी कहना चाहिये, यदि महादुष्कालके समगम अत्रमोदर्य तपमें अतिचार लगा हो अथवा अयोग्य भक्षण किया डो वह भी निवेदन करना चाहिये. इतर मुनिओंने भी दुष्कालमें अयोग्य सेवन किया होगा तो वह कहना चाहिये. दर्प, प्रमाद अगरहसे जो अतिचार होते हैं उनका भी ऋथन करना चाहिगे. दम्पपमादआणाभोगआपगा आदर य तिलिणिदा ।। संकिदसहसाकारे य भयपदोसे य मीमंसं ॥ ६१२ ।।
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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