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मूलारावना
आधा
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विजयोदया-जाणे शाने । दसणतववीरिए श्रद्धायां तपसि वीयं च योऽतिचारः । मणवयणकाय जागेहि मनोयाक्कायक्रियाभिः । मनसा सम्यग्ज्ञानस्वायज्ञा, किमनेन ज्ञानेन, मपचारित्रमेव फलदाग्यनुयामिति । सम्पयामासा मिथ्याशानमिदमति दूषणं । मनमा याचा कायन वा स्यामचिम्काशने, मुखययन नैनवाति सिरपनन पर । शंकाकांक्षादि दर्शनेऽतिचारः। तपस्यसंयमः। वीर्य स्वशातिगृहने । ल नानीवारः सर्वस्वित्रप्रकार इति कथयति । पाद हरिदे बाबोस क विता मञ्च - आदपरयोगकरणे य आम्म नैव वृतः कारितोऽनुमतश्च, परप्रयोगक्रिया हतः कारितोऽनुमत्तो वा ॥
__. मूलारा-जाणे इत्यादि । सम्यग्ज्ञानस्य किमनेन तपश्चारित्रमेवाभिगन फलदायनुप्रेयमिति मनसावज्ञा, मियाज्ञानमिदमिति बाचा, कायेन च मुखत्रैवानारूचिप्रकाशनं । शिर:कंपनीतदेवमिति वातिचारः । दर्शनादीनां च प्रागुरता एव । आइपरपओगकरणे आमना परण वा कृतः कारितोऽनुमान ।।
अर्थ- ज्ञान, दर्शन. तुप और वीर्य इनमें मन, वचन और शरीर और नत, कारित, अनुमोदन अतिचार उत्पन्न हुए हों तो उनकी आलोचना करता है. मनके द्वारा सम्यन्ज्ञानकी अवज्ञा करना, सम्यग्ज्ञानकी क्या जरूरत हैं, तप और चारित्रही फलदायक है. उनका ही आश्रय करना चाहिये. अथवा सम्यग्ज्ञानको यह मिथ्याज्ञान है ऐसा दुपण लगाना, मनसे, बचनसे और शरीरसे सम्यग्ज्ञान के विषय में अरचि प्रगट करना. मुंह मोडकर अथवा मस्तक हिलाकर यह सम्यग्ज्ञान नहीं है ऐमा प्रगट करना शंकाः कांक्षा वगैरह सम्यग्दर्शनके अतिचार हैं..
तपश्चरण करते समय असंयमरूप प्रवृत्ति करना, तुपका अतिचार है. अपनी शक्ति छिपाना वीर्यका अतिचार है. ये अतिचार कुत, कारित और अनुमोदित ऐसे तीन प्रकारक है. स्वयं करना, स्वयं कराना और अनुमोदन देना अथवा परपयोग क्रियास भी करना, कसना, और अनुमोदन देना ऐसे तीन प्रकार हैं.
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अहाण रोहगे जणवए य रादो दिवा सिंवे ऊमे ॥ दप्पादिसमावण्णे उद्धरदि कर्म अभिदतो ॥ ६११ ॥ दुर्भिक्ष मरके मार्गे चरिचौरादिरोधने । योऽपराधो भवत्कश्चिन्मनोवाकायकर्माभिः ।। ६३५ ॥