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________________ मूलाराधना आमासः ८०३ Aamera वस्त्रं शोधयति तथाभूतमेय लोहित । एवमतीचाराशुधिः अशुभरत्नत्रयोद्देशप्रधृप्तेः अशुद्धयालोचनया ननिराक्रियते इति साधर्म्यनियोजना॥ मूलारा- लोहिदकदं रुधिरेणालिम । करोतेः क्रियासामान्यबाचियेन लेपनऽपि वृत्त्यविरोधित्वान् । ननिमा स्वयं टुष्टेनान्यस्य दुनिराकर्तुमशक्यत्वादिनि सामर्थ्यम् । अर्थ-- जैसे कोई मनुष्य रक्तसे भरा हुआ वस्न रक्तस ही धोने लगजाय तो वह कभी विशुद्ध नी । अशुद्धही रहेगा वैसा यह आलोचना दोष है. अर्थात् यह दोप अतिचारोंस आत्माको विशुद्ध नहीं बना सकेगा. रक्तसे उलटा पदार्थ पानी है. वह स्वयं स्वच्छ है अतः रक्तस भरे चखुको यह स्वच्छ करता है. अथवा वस्त्रको लगा हुआ कीचड धो डालता है. परंतु रक्त रक्तसे लिस हुए वस्त्रको कभी भी शुद्ध नहीं कर सकेगा. उसी तरह अशुद्ध रत्नत्रयवाला पाश्वस्थ मुनि अशुद्ध रत्नत्रयवाले मुनिक अतिचारोंका निराकरण करनेमें समर्थ होता नहीं. -. --...-.. -- पवयणणिण्हवयाणं जह दुक्कडपावयं करेंताणं ।। सिद्धिगमणमइदूरं तधिमा सल्लुहरणसोधी ।। ६.५ ॥ जिनेशवाक्यप्रतिकूलचिता यथा विमुक्तिं दवयंति पूताम् ।। तथा विशुद्धिं धियो घदंतो दोषाकुलानां निजदषणानि ।। ६३० ।। इति तत्समः 11 विजयोदया-पवयणणिययाणं जिनप्रणीतषचननिमयकारिणां । तुक्कडगावगं करताणं दुरुकरपापकारिणां । जह सिसिगमणमावूरं यथा सिगमनमतिदुष्करं । तस्सेवी मां ॥ मूलारा-पवयणहिण्डोदाणं आगमापन्होतणां। अदिरं अतिविश्ल अभव्यापेक्षया अनंतकालेनाप्यसभवि। ___ अर्थ - जो नि जिनेश्वरके कह हुए आगमके वचनाका लोष करने हैं और दुष्कर पाप करते हैं उनको मोक्ष की प्राप्ति जैसी अनंतकाल व्यतीत होनपर भी होती नहीं वस जो यान्वसहित आलोचना करते हैं उनको मोक्षप्राप्ति अत्यंत दूर है. Punaries
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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