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________________ मूलाराधना ૮૨ अर्थ -- यह मुनि सुखिया स्वभावको और बतोंके अविचारोंको जानता है, इसका और मेरा आचरण समान हैं, इसलिये यह मेरेको बडा प्रायश्चित न देगा ऐसा विचार कर वह पार्श्वस्थ मुनि गुरूको अपने अविचार कहता नहीं और समानशीलको अपने दोष बताता है. आलोचिदं असेसं सव्वं एवं मएन्ति जाणादि ॥ सो वयणपडिकुद्धो दसमो आलोचणा दोसो | ६०३ ॥ उत्तरा गाथा एतस्य कथनं शुद्धिः सुखतों मे भविष्यति ॥ अयमालोचनादोषो दशमो गदितो जिनैः ।। ६२८ ॥ विजयोदय- स्पष्टार्था । मूलारामपति अयमिति मिश्रक्रमः तेन जानातीति च मत्वा परिकथयतीति संबंध: । सो प्रागुक्तलक्षणः वयणपद्धि आगम निषिद्धः ॥ अर्थ – यह पार्श्वस्थ मुनि कहे हुए संपूर्ण अतिचारोंका स्वरूप जानता है ऐसा समझकर भ्रष्टोंसे प्रायचित्त लेना यह आगमनिषिद्ध दशवा तत्सेवी नामका दोष है. जह कोइ लोहिari वत्थं धोवेज्ज लोहिदेणेव । पाय तं होदि विसुद्धं तधिमा सल्लुदरणसोधी ॥ ६-४ ॥ उक्त दोषः सवपस्य सदोषेण न नाइयते ॥ रक्तरतं कुतो वस्त्रं रक्तेनैव विशोध्यते ॥ ६२० ।। विजयोदया "जए कोर लोहितायं करोति कियासामान्यवातेनायमर्थः यथा कश्चि दिन धोवेज मक्षालयेत् । लोटिच लोहितेनेव में पविति विशु । धिमा सल्लुद्धरणसोधी आलोचनाशुद्धिः दोषं न गिरस्वति । तद्विलक्षणं वस्तु तथा निर्मलजले पंक वखस्य न तु लोहितन ि शुर 夕
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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