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________________ मूकारावना आवासः - nimarinavia विजयोदया-मयतमहादो इत्यत्र पनघटनेयं । जो अपणो दोसे थकतो मोधी इच्छद सो मयत महादो उदय ह. चदपनि सो कर इच्छर य । य आगनो दोवाननभिधाय गुरूणां द्धिमिच्छति स मृगहरणान उदकं यांति, चंद्रपरिवारानमिच्छति । निकलासाधम्यादयं हटान्तवार्धान्तिकभावः। छन । नम्न देव समर्थयते मूलारा--मिगतिणहानी मृगतृष्णात. । उदगं उसकं । चंदपरिवेसणे चंद्रपरिवेषात् चंद्रावबादित्यर्थः । कूरं भक्त श्रीचंद्रटिप्पन त्वेवगुक्तं । अत्र कथयार्यविपत्चिर्यथा -- चंद्रनामा खूपकारः परिवारहितो राजा निःसारितोऽन्यः कृतः । परिवारेण च राज्ञा सह भोजनं परिहतं । एनमेकदा ममावाते तस्मिन राजनि भोक्तुमुपविष्टे गगने चंद्रस्य परिवेषमालोक्योर लोरा चंद्रस्य परिवषो जान इति । पत्रकछुवा परिवारः सूपकारस्य राजकुले प्रवंशो जात इति मत्वा भोक्तुं गतवान्न च कूरं प्रांतवान् इति । गुरोरग्रेऽप्रकाशयन् ।। .......... ...... . .: .. अर्थ-जो मुनि अपन दोषोंका विवचन न करके उनसे मुक्त होना चाहेगा वह मृगतृष्णासे पानी प्राप्त करने की कोशिश करता है अथवा चद्रक परिवेशमे अन्न प्राप्त करने की इच्छा धरता है ऐसा समझना चाहिये. नसंरचः नागमे प्रगटनगन्या प्राचिन कानाव्य मा इन दो दृष्टान्तोंस मिद्ध होता है. शांत और दाष्टान्तिक इन दोनाम निकलतादी समा-ता इस गाथामें दिग्याई है. क्रिी गजान चंद्रनामक रसोइया को अपने घर निकाल दिया. और उसके स्थानमें दुमरे रमाइयाको नियुक्त किया. नव गजाक साथ परिवारने जीमना छोट दिया, एक दिन राजा भोजन के लिए आया उस समय आकाशम चंद्रको परिवपयुक्त दखकर चंद्रका परिवश-प्रबंश हुआ एसा लोगान कहा तब मुनकर परिवार भोजनके लिये आया परंतु उसको भोजन नहीं मिला. एसी कथा यहां समझनी चाहिये. यह कथा श्रीचंद्राचार्य के ट्रिप्पनकमें कहीं है. ---- - पनिखयचाउम्मासियमंत्रच्छरिएमु सोधिकालेस ।। बहुजणसद्दाउलए कहेदि दोसे जहिच्छाए ॥ ५९० ॥ शब्दाकुले चतुर्मासपक्षवर्षफियादिने । यथेच्छ पुरतः सूरंरालोचयति योऽधमः ।। ३१५ ।। . -.-- n E
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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