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आश्वासः
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मनागमनाम
रिजयोदया - धादो वेन्ज अपणो गुप्ता नवेदन्यः । जदि अण्णामि जिमिम्मि संतस्मि । यवन्यस्मिन्भुक्तवति सति । तो ततः । परबबदेसकदा सोधी परव्यपदेशकृता शुद्धिः । अण्ण विसोधेज्ज अन्य विशोधयेत् ।।
छन्नदोगदुष्टालोचनाया नैष्फल्यं दृष्टांतन स्फुटयतिमूलारा-धादो तृप्तः । जिमिदम्मि मुक्तवति । संतम्मि सति | परवरदेसकदा अन्यमुरिश्यकृता ।
अर्थ-उपयुक्त दोषका दृष्टांत इस प्रकार है - यदि किसी अन्य मनुष्यके भोजन करनेपर उससे अन्य मनुष्यका पेट भरेगा तो दुसरेके नामसे किया हुआ प्रायश्चित्त दूसरेको विशुद्ध करेगा ऐसा मानना पढगा.
कष्टात्तम गाथा -
तवसंजमम्मि अण्णण कदे जदि सुग्गदि लहदि अण्णो । तो परववदसकदा सोधी सोधिज्ज अण्णपि ।। ५८८ ॥ संयम चन्कृतगन विमुक्ति लमते परः ।।
परण्याजकता शुद्धिस्तदा शोधयते परम् ।। ६१३ ॥ तदेव हदयति - मूलारा-सुग्गदि सद्गतिम् ॥
अर्थ-तप और संयम भी अन्य व्यक्तीने किये जानेपर यदि अन्यही व्यक्तीको सुगतिकी प्रत होगा तो इसा के नाम किया हुआ प्रायश्चि भी दुसरको दोषसे मुक्त करेगा ऐसा मानना पड़गा.
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मयतण्हादो उदयं इच्छइ चंदपरिवेसणा कूरं ।। जो सो इच्छइ सोधी अकहंतो अप्पणो दोसे ।।.५८९ ।।, .. गुरोनिजं दोषमभाषमाणो दोषस्य यः कांक्षति शुद्धिमज्ञः ॥ मन्ये स तोयं मृगतष्णिकातो जिघृक्षतेनं शशिषिबतो वा।। ६१४॥
इति छन्नं दूषणम् ॥
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