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________________ SCHO मूलाराधना आधार जिसके अंदर लाल भरी है एमे सोनेके कडे के समान यह आलोचना शुद्धि है. जैसे प्रथम दृष्यान्नमें सुत्रणका ऊपर ही मुलामा है परंतु अंदर निःसारपना है वैसी यह आलोचना उपरमे तो अल्पशुद्ध दीखती है परंतु अंदर अशुद्धि भरी हुई है. जैसे सोनेके पत्रेसे मरा हुआ लोहा अंदर छिपा हुआ रहता है. बैंस ग्रह आलोगनाशुद्धि बडे घटे पाप छिपानेवाली और ऊपरसे छोटे पापोंका कथन करनेवाली है. यह मुनि पापभीर है यह बडे पापॉमें कैसे प्रवृत्त होगा ऐसा मानो विश्वास उन्न्न करने के लिये यह यूक्ष्म दोषोंका कथन करसंघाली आलोचना है. यह तीसरलास में भरा हुआ कडेके दृष्टान्तसे व्यक्त होता है. इस प्रकार सूक्ष्म दोपकी आलोचनाका वर्णन दुआ. जदि मूलगणे उत्तरगुणे य कामह !ि दो । पढमे विदिए तदिए चउत्थए पंचमे च बदे ॥ ५८४ ॥ आय वन द्वितीय वा दोषः संपात गदि ॥ सूर ! कस्यापि कंध्यस्थ विशुद्धति तदा कथम् ॥ ६०॥ विजयोदया- यदि मूलगुण उत्तरगुणे च कस्यचिद्विरते मूलगण, चारित्र, तपसि या अनशनादानुत्तरगुणे अतिचारो भवेत् । अहिंसादिके यते । दण्गमिनि पाएं अगलीपादोपं गारपस्केन व्याकर्तुकामः एवं माथात्रयेण माह गूठारा-मूलगुरो चामि तापि वा । अहिमादिने । पं.सार ६ मनिःगानाः ।गा अगरः । प्राचिन । उवा मालोचनया, ननयम, स्थानानादिना । । । ... मा । करोति । मचायमपराधः कृतस्तस्य कि प्रायश्चित्त इति न पनि । परम ।। अर्थ-यदि किसी मुनिको मूलगुणमें अर्थात पांच महावतामें और उत्तरगुणोंमें-- तपश्चरणमें अनशमादिक बारा तपोंमें अतिचार लगेमा तो - - को तरस दिज्जइ तबो केण उवाएण या हवदि सुडो ।। इय पच्छण्ण पुग्छदि पायच्छित्तं करिस्सत्ति ॥ ५८५ ॥ PARAMA
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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