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________________ मूलाराधना आश्वास चकमणे यहाणे णिसेज्जउवट्टणे य सयणे य ॥ उल्लामाससरक्खे य गम्भिणी बालवत्थाए ॥ ५८० ॥ - आसने शयने स्थाने संस्तरे गमने तथा । "आर्द्रगानपरामर्श गर्भिण्या बालवत्सया ॥६०५ ॥ परिविष्टेऽभवदोषो यः सूक्ष्मः स निगटाते ।। स्थूलं प्रनाथ नासौ जिनवाकपपरामरः ॥ १०॥ विजयादगा-चकमा अरदयाययन पशादियादितचिसो मजागीयामरायन गयान । टांग गिग उज उवण य सयणे य प्रमार्जनमकृत्वा स्थानं, निपया, पारपाचकृता । उल्लामाससक्ख आदायां गात्राधिकं स्पृष्टं । सरयच य सन्नित्तधूलिसहिते स्थितं सुप्तमासित वाग्मिणी गभिपया । बालबस्थाग, वालवन्सया दीयमानं गृहीते इति । सुरममिति पंचम आलोचनादोषमाचले मूलारा-कमणे इत्यादि अत्र अपना ध्याख्येयः । अपाहि- जयश्यायाचित्रमाणे व्याकुलचित्तो गतोऽहमिति सुक्ष्म दोष वक्ति। ठाणे जिसेज्ज रदृषणे प्रतिलेखनमकृत्वा स्थानगुपवेशचं शयनं वा मया कृतमिति ब्रूते । करणे काले पहायर मचा न कतमिति बदति । जल्लामास आश्पर्शः जलादि नागात्रादिकं मया स्पृष्टमिति कथयति । सरक्खे साचत्तधूलिस्थाने मयास्थित, धूलियुक्तपादेन मया जले प्रविधं, जलापादाभ्यां रजोऽनष्टधभित्यादिकमालोचपति । गम्भिणी अष्टमादिमासगर्भधारिण्या मम परिविष्टमिति बृते । वालअच्छाए मासाभ्यंतरप्रसूतया मम परिविष्टं सर्वतं स्तनलग्नबालं त्यक्त्वा बिया मेऽन्न दत्तमिति निगदति। अर्थ-चक्रमण--जहां ओस बहुत गिरी थी ऐसे मार्ग से. इर्यासमितीमें चित्तकी एकाग्रता न कर मैने गमन किया था. पिच्छिकासे जमीन साफ न करके मैं जमीन पर बैठा था, सोया था. और खड़ा हुआ था. योग्य कालमें मैने छहो आवश्यक कि ये नहीं थे. पानीसे गीले शरीर आदिक पदाथको मंने स्पर्श किया था. सचित्त धूलिपर मैं चैटा था. खडा हुआ था और सोया था. धूलिसे भरे हुए पावाल जलमें मेने प्रवेश किया था. आठ महिन नड महिने जिसको हुए है एसे गर्मवतीने मरेको आहार दिया था. बसत होकर जिसको एक महिना भी पूरा नहीं P हुआ था उसे स्त्रीने मरको आहार दिया था. रोता हुआ अथवा स्तनपान करता हुआ बालक छोडकर स्त्रीने मर ७८७
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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