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________________ मूलाराधना करके यूक्ष्म अविचारों को छिपानेवाला मुनि जिनद्रभगवानके वचनास परामुख हुआ है एसा समझना चाहिये. आश्राम .७८६ सहमं व चादरं वा जई ण कहज्ज विणण मुगुणं ॥ आलोचणाए दोसो एसो हु चउत्यो होदि ।। ५७८ ।। नदोष गुरोरग्रे स्थूलं सुक्ष्म च भाषते ।। विनयेन सवा दोषश्चतुर्थः कथनाश्रयः ॥ ६०३ ॥ . विजयोदया-स्थूलस्य सूक्ष्मस्य वातिचारजातस्य चालोचना चतुर्थो दोपः इति सुमं य इत्यस्यार्थः ।। मूलारा-स्पष्टं। अर्थ-स्थूल और सूक्ष्म अतिचार के समुदायका विनयसे गुरुके चरणमें वर्णन न करना यह चतुर्थ दोप है. जह कंसियभिंगारो अंतो णीलमइलो बहिं चावो ।। अंती ससल्लदोसा तधिमा सल्लुहरणसोधी ।। ५७९ ।। बाह्याकारणातिशुद्धोऽपि साधुनातःशुद्धिं याति मायादिशल्यः ।।। भुंगारोवा कांसिकः शोध्यमानो याद्ये शुद्धि कश्मलांतः मयाति ॥६०४॥ विजयोदया-चादरं ॥ ४ ॥ जह कंसियभिंगारो यथा कास्वरचितो भंगारः । अंतो अभ्यंतरे। णीलमइलो नीलः सम्मलिनः । बहि योफ्यो बहिःशुहः । अंतो ससालदोसा अंतः सशल्यदोषा इसमालोचना शुशिः। बादरालोचनाया दुष्टत्वं सदृष्टांतमाचष्टे .. . मूसारा-फेसियभंगागे कॉम्बयभंगार: | णीलभालो का सम्पादिनः । परि पोयो वलिः शुधः । दागा मालाश पदागनुका ।।। . अर्थ-जसा कांस्यधातुका बना हुआ कमंडलु अंदर तो नील और मलिन होना और बाहर रखनमा दीखता है. वैसे इस आलोचनामें अंतरंग माया बसी हुई है अतः यह आलोसना दोपयुक्त समझनी चाहिये. इस रीतीसे बादर दोषकी आलोचना का वर्णन है. . , ...
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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