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________________ SE मूलाराधना विजयोदया-जह वालुयाए यथा वालुकाभिः परवि पूर्वते । अबढ़ो वालुकामध्यकृतो गर्तः । उकीरमाणगो चय उकीर्यमाणोऽपि सन । नाकम्मादागकरी या कर्मग्रहणकारिणी । मा सक्लुद्धरणसोधी इयमालोमनाया शामिः । मायालयनिगकरणार्थमालोचनाया अनोपया माययात्मानं प्रलादयति । यथा वालुकाविलेपो गर्तसम्कागीतकमरा यति गतीशि | दि यहवालोचनाकारी, मायाशा नगलायमालोचनायां प्रवृत्तोऽन्यथा मायाऽन्मानं प्रच्छादयति वालुकाविशेपो गतसंस्काराय क्रियमाणो वालुकया गई पूरयति र्शत दर्शमितमिदमाह मूलारा--अक्ढो अरटो गतः । प्रक्रमाद्वालुकामध्य एव कृतः । पूरदि पूर्यते । उक्कीरमाणगो व उत्कीर्यमाणोऽपि उतिच्यमानोऽपि । कम्मादाणकरी अपूर्वकर्मानाविणी॥ अर्थ-जैसे वालुकाके मैदानमें कोई मनुष्य खाहा खोदने लग जाय तो वह खोदनेके समय ही नालुकाओंसे फिर भग्जाता है. वैसी यह आलोचना शुद्धि है. अर्थात् मायाशस्य मनसे निकालनेके हेतुसे यह आलोचनागेन. हुमागंड अम्गायः पनको आच्छादित करने का प्रयत्न कर रहा है ऐसा समझना. जं दिहं इस नामक आलोचनादोषका वर्णन दुआ. बादरमालोचेंतो जत्तो जत्तो वदाओ पडिभग्गी ॥ सुहुमं पच्छादेतो जिणवयणपरंमुहो होइ ॥ ५७७ ।। स्थूल व्रतातिचारं यः सुक्ष्म प्रच्छाच जल्पति ॥ पुरतो गणनाथस्य सोऽद्विाक्पयहिर्भवः ।। ६०२॥ निजयोदगा-यादगमालोचेंतो । अचे पदसंबंधः, जसो जत्तो बदामो पडिभगो सम्माग्रस्माद्भशाप्रतिभाः । # याद आलोनती स्थूल कथान । सुमं पत्रकार की पुश्मनोपं प्रत्याश्यम् । जिया वयापरंमुहोहोर जिनवमनपरराव-म्गयो परति ॥ पादरमिति चतुर्थमालोचनादो गाथा: व्याचक्षाणो द्वाभ्यां लक्षयतिमूलारा--बदार बलात् । पडिभगो भ्रः । अर्थ-जिन जिन व्रतोंमें अतिचार लगे होंगे उन उन ब्रतोंमें स्थूल स्थूल अतिचारोंकी तो आलोचना
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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