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________________ मूलारावनां ७५० क तहिं सूरिः क्षपकरयालोचनां प्रतीच्छति इति पृच्छायां गाथायमाह - मूलारा - अरहंत अप्रावित्रीसहित प्रतिभास्थानं । सिद्ध प्रातिहार्बरद्दितप्रतिमास्थानं | सागर समुद्र समीपप्रदेशः । पत्रमसर पद्माकरजलाश समीपं खीरपुष्कफलभरिदं क्षीरवृक्षैवंटभूताशोकादिभिः पुष्पितैः फलितेष वृक्षैराकीर्णो यो देश स्वत्प्रत्यासन्नस्थानं उज्जाणभवगृहं सपदि ॥ किस प्रदेश में क्षपककी आलोचनाका आचार्य स्वीकार करते हैं? इस प्रश्नका उत्तर अर्थ - - अर्हन्तका मंदिर, सिद्धोंका मंदिर, अर्हत् और सिद्धांकी जहां प्रतिमा है ऐसे पर्वतादिक. समुद्रके समीपका प्रदेश, जहां क्षीरवृक्ष हैं, जहां पुष्प और फलोंसे लदे हुए वृक्ष हैं ऐसे स्थान, उद्यान, तोरणद्वारसहित मकान, नागदेवताका मंदिर, यक्षमंदिर ये सब स्थान क्षपककी आलोचना सुननेके योग्य हैं. अणं च एवमादिय सुपसत्थं हवइ जे ठाणं ॥ आलोयणं पडिच्छदि तत्थ गणी से अविग्घत्थं ॥ ५५९ ॥ शस्तमन्यदपि स्थानमुपेत्य गणनायकः || आलोचनामसंक्लेशां क्षपकस्य प्रतीच्छति ॥ ५८४ ॥ मूलारा स्पष् अर्थ - और भी अन्य प्रशस्त स्थान आलोचनाके लिये योग्य हैं. ऐसे प्रशस्त स्थानों में क्षपकका कार्य निर्विघ्न सिद्ध हो इस हेतु आचार्य बैठ कर आलोचना सुनते हैं. सूरिग्वंस्थित्वा मालोचनां प्रतिगृातीति कथयति पाचोदीचिमुह आयदणमुहो व सुहणिसण्णो हु ॥ आलोयणं पडिच्छदिएको एकस्स विरहम्मि || ५६० || जिनाश्रया विशः प्राच्या कौर्या वा स सन्मुखं ॥ शृणोत्यालोचनां सूरिरेकस्यैको निषण्णवान् ॥ ५८५ ।। अवासः ४ ७७०
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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