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________________ लारावना भाषामा भयमानमृषामायामुक्तेन प्रांजलात्मना ।। गेगा भागात पाल्पानरनि धीमता ।। ५६९ ।। विजयोदया-जह बालो अंर्पतो यथा बालो जल्पन् । कज्जमकर्ज य कार्यमकाय वा। भणदि भणति । उजुग कामा कमेण । तह तथा । आलोचद्ध्यं वक्तव्योऽपराधः । मायामोसंच मोर्ण मनोगा चमतां, वचनगतां, मृपा च मुक्त्या ।। आलोचनोश्यतस्य तद्विधिमभिधत्ते-- मृलारा-उज्जग प्रांजलं। आलोचेदव्वं प्रकाश्य । मायां मनोजकता । मोसं वाग्वकताम् ।। अर्थ-जैसा बालक कार्य हो अथवा अकार्य हो सरल अंतःकरणासे अपने पिताको कहता है. इसीतरह क्षपककोभी अपने अतिचार मनका कपट छोडकर और वचनकी असत्यता दूर कर कहने चाहिये. उपसंहरति प्रस्तुतम् दसणणाणचरित्ते कादूणालोचणं सुपरिसृद्धं ॥ णिस्सल्लो कदसुद्धी कमेण सल्लेहणं कुणम ॥ ५४८ ॥ सम्यक्स्वज्ञानवृत्तषु विधायालोचनां यते ॥ कुरू सलेखनां सम्यकूकमेणापास्तकल्मषः ।। ५७० ॥ विजयोदया-दसणणाणचरित दर्शनक्षानचरित्रविषयां । आलोयण कादृण अपराधमभिकाय । सुपरिमृद्ध णिसल्लो माथाशल्यरहितः । कयसुद्धी कृतगुरुनिरूपितप्रायश्चित्तः । कमेण संलहणं कुणतु कामेण सल्लेखनां कुरु ॥ आलोच्य मया किंकृत्यमित्याह--- मूलारा-सुपरिसुद्धं सर्वथा त्यक्तमायं । कदलुद्धी कृतगुरुदानायश्रितः । सल्लेहा कुणमु सामना शरीर. स्वागाय योग्यता मुत्पादयत्यर्थः । प्रस्तुत विषयका उपसंहार करते हैं--- अर्थ--सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र इनमें हुए अपराधोंका निवेदन मायाशत्यका पूर्ण त्याग करके | करना चाहिये, गुरूओंने दिया हुआ प्रायश्चित्त धारण करके शुद्ध होना चाहिये. तदनंतर क्रमसे सल्लेखना करनी चाहिये ७६२ . PAPATARArava
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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