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________________ मूलाराषना अश्विास ७६१ अर्थ-अतिचाररहित होकर रनवयमें प्रवृत्ति करनेसे उत्तम मुनिओंको महान लाभ होता है अर्थात उनके सर्व दुःखोंका क्षय होता है ऐसा जानकर ज्ञान, दर्शन और चारित्रकी शुद्धि कर तथा निःशल्य होकर हे क्षपक ! तुम घीरतासे इनमें प्रवृत्ति करो. तम्हा सतूलमूलं अविछूटमविप्पुदं अणुब्विग्गो ॥ णिम्मोहियमणिगूढं सम्म आलोचए सव्वं ॥ ५४६ ॥ सम्यगालोचयेत्सर्वमनुद्विग्नमविस्मृतम् ।। आनिर्गढमानमोहं निर्मूलमपगौरवम् ।। ५६८।। विजयोदया-तम्हा तस्मात् यस्मात्सल्यमरणे दोषः। निःशल्यमरणे च सकलनिवृत्तिः दुःखकारणानां कर्म णामभावः । तम्हा तस्मात् । सम्मं सव्वमालोचे सम्यक सर्वमतिचारं कथयत् । दुःखनिवृत्यर्थ इति । कथमालोचयेदि त्याशंकायामालोचनाविशेषणमा सहरमूलं तूलमृलाभ्यां सहितं । सव्वं निग्यशेषं । अवि अविस्मृतं । भविष्युदं अद्भुतं । अणुविरगो निर्मयः । णिम्मोहिद गोहरदिनं । अणिगूद अनिगूढ ॥ कथं नि:शल्या भवमिति प्रश्ने सत्याह मुहाग- नि:शल्येतरसर नगुणदीप गादत्र । समूलनूलं दीक्षादिवसादारभ्यायवाचन पवृत्तम निचार जाने । क्रममुचनाभि । अन्ये सतलगलं इति पठित्या समरनावयवयुक्तमित्यर्थमाहुः । अविथूल अनधिकं । अविपुदं अब. रित। अणुबिग्गी निर्भयः सन् । णिम्मोहिदं अविस्मृत । अणिगूढ अनपलपिसं । आलोचए आलोचय, प्रकाशय स्वम् ।। अर्थ--सशल्य मरणसे भयवन में दुःख सहन करना पड़ता है. और निःशल्यमरणसे सर्व कर्मीका क्षय होता है, जिससे मुक्तिसुखकी प्राप्ति होती है. इसलिये दुःखकी निवृत्ति करने के लिये संपूर्ण अतिचार कहने चाहिये. स्मरण कर, शांतरीतीसे, निर्भय और मोहरहित होकर दोपोंको न छिपाकर कहना चाहिये, दीक्षाग्रहण कालसे आजतक जितनदोष हुए डांगे उन सबको कहना चाहिये. उसमेमे एकभी छिपाना नहीं चाहिय जह बालो जपतो कजमकजं व उज्जु भणइ ॥ तह आलोचेदव्वं मायामोसं च मोत्तूणे ॥ ५७ ॥ ७६१
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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