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मूलाराधना
आश्वासः
अर्थ-- जैसे जिसको काटा चुभ गया है वह दाखसे विह्वल होता है, उसके सर्व शरीर में वेदना होती है, परंतु जब कांटा शरीरसे निकाल जाता है तब वह मनुष्य सुखी होता है.
दान्तिकयोजना--
एवमगुडुददोसो माइलो तेण दुक्खिदो होइ ॥ सो चेव वंददोसो सुविसुद्धो णिवुदो होइ ।। ५३७ ॥ दुःश्वव्याकुतिस्वान्तसापा शायन शाल्यात
निःशल्यो जायते यः स लभते निवृति पराम्॥५५७।। विजयोदया-पवं कंटकेन षिद्ध इस अणुददोसो अनुतदोषः । माइलो मायावान् । स्वापराधाकथनानुद्र' तदोषेण 1 दुखिदो होदि । छुखितो भवति । सो पेय पदयोसो स एव वातदोषः । मुविसुद्धोणिबुदो होदि । निर्वृतः भवति ॥
मूलारा-गायिलो मायायुक्तः । तेण सम्यक्त्वादिदोषेण अनुद्धतेन । दुखिदो इहपरलोके न दुःस्वार्तः । बंतदोसो परस्मै कथितापराधः । सुषिसुद्धो कृतस्वपरसाक्षिकशुद्धिकत्वात् ।
दार्शन्तिकमें योजना___अर्थ--- वैसे जिसने दोषरूपी कंटकको अपने मनसे निकाला नहीं है ऐसा मायावि मुनि अपने अपराधोंका कथन न करना एतत्स्वरूप दोषसे दुःखी होता है. परंतु जब सर्व दोषोंका कथन करता है तब मायाशल्य नष्ट होनेसे काटा निकल जाने के समान आत्मामें प्रसन्नता उत्पन्न होती है.
मिच्छादसणसल्लं मायासलं णिदाणसल्लं च ॥ अहवा सल्लं दुविहं दव्वे भावे य बोधव्यं ॥ ५३८ ॥ मायानिदानमिथ्यात्वभेदन त्रिविध मतम् ।। अथवा द्विविध शल्प द्रव्यभावात्मकं मतम् ॥५५८॥