SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 769
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ MORE महाराभरा मावासः - लगे होंगे उन सबका और दर्शनादिकके प्रत्यक अतिचारोंका हे क्षपक !तू एकाग्र चित्त कर कथन कर. । शंका ... गाथामें 'सर्व, शब्द है उससेही सर्व अतिचारोंका कथन करनेका आशय स्पष्ट होजाता है. 'निरवशेष, यह गाथामें दुसरा शब्द है वह व्यर्थ दिखता है. उत्तर-ज्ञानादिकॉमें किसी एकके सर्व अतिचार इस अर्थमेंमी सर्व शब्दकी प्रवृत्ति देखी जाती है, इस लिय' निरवशेष' शब्द ज्ञानदर्शनादिकोंके प्रत्येक अतिचारोंका ग्रहण करनेके लिये माथामें आचार्य महाराजने जोड दिया है ऐसा समझना. कथं निरवशेषालोचना कृता भवतीत्यारकायामाह काइयवाइयमाणसियसेवणा दुप्पओगसभूया ॥ जई अस्थि अदाचार आलोचेहि गिरसे। ५३१ ॥ विद्यते यतीचारोमनोधाकायसंभवः ।। आलोचय तदा सर्व निःशल्यीभूतमानसः ॥ ५५१ ।। विजयोदया-काइयवाह्यमाणसियसवणा कायेन, पाचा, मनसा च प्रवृत्ति प्रतिसेवना । दुप्पभोगसंभूया दुप्रयोगसंभूतां । तं नां । आलोहि कथय । जिससे निःशेषजह अत्यि अदीचारो यद्यस्स्थतिचारः। मूलारा--काइन इत्यादि कायिक कार्य भवं । पाइय वाचि भवं । माणसिय मनसि भवं यत्सेवनं पिंडादेपयोगस्तस्य दुष्प्रयोगो अशुभानुष्टानगुत्सूत्राचरणं इत्यस्तस्मात्संभूद संजातः । सेवणमित्यत्र पादपूरणेऽनुस्वारः । संभूदमित्यत्रार्थत्याल्टिंगव्यत्यय तथा चोक्तं कायिकवाचिकमानस सेवादुष्प्रयोगसंभत्तो - यद्यस्ति तेऽतिचारो निरवयर्ष निगद तं गुरखे ॥ भगवतो निकटे निःशेषमालोचय यास्ति तेऽतिचारः। कायादिना पिडादीनुत्सुत्रमुपयुंजानस्य योऽतिचारः संपन्नस्तं प्रकाशयेति तात्पर्यार्थः।। निरवशेष आलोचना कैसी की जाती है ? इस शंकाका उत्तर ७४९
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy